For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 112/22

गई तो रंग बदलता ये शह्र छोड़ गई

घटा बहारों में ढलता ये शह्र छोड़ गई

 

सबा चमन से गुज़रते हुये महक लेकर

रविश-रविश* यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई                                    *बाग़ के बीच की पगडण्डी          

 

फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी

यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई

 

तमाम रात भटकती वो तीरगी* आखिर                                        *अँधेरा

पिघलती शम्अ पिघलता ये शह्र छोड़ गई

 

रहे हयात में तर्जे हयात* देख बदी                                              *जीने का ढंग

हुदूदे डर से* निकलता ये शह्र छोड़ गई                                        *डर की सीमाओं से

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 4, 2015 at 12:51am

आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए.

Comment by umesh katara on April 2, 2015 at 10:07pm

वाह वाह  वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 9:16pm

आदरणीय जान गोरखपुरी जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 7:59pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया एक दो बार मुझे खटका हुआ था पर लापरवाही से छोड़ कर आगे बढ़ गया था एक बार फिर बहुत बहुत शुक्रिया आपका। जल्दी सुधार करके पोस्ट करता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2015 at 6:04pm

भाई शिज्जूजी, क्या कमाल की ग़ज़ल हुई है !

सबा चमन से गुजरते हुएमहक लेकर
रविश-रविश यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई.. . इस मुलायम कहन पर ढेरों दाद लीजिये..

तमाम रात भटकती वो तीरग़ी आखिर
पिघलती शम्अ पिघलता ये शह्र छोड़गई... . आदाब साहब !

रहे हयात में तर्जेहयात देख बदी
हुदूदे डर से निकलता ये शह्र छोड़ गई..  वल्लाह ! (जब मानी मिल गये तो शेर का मेयार समझ में आ रहा है)

इस उम्दा कहन को शेरों में ढालने के लिए बार-बार बधाई..


लेकिन साहब आपने मतले को यों बेपरवाह हुआ क्यों छोड़ दिया ? अब इतने सुधीजनों में से किसी ने इस ओर अगाह नहीं किया है, सो मैं भी भ्रम में आ गया हूँ, कि क्या मैं ही गलत तो नहीं हूँ !  
भाई मेरे यहाँ तो काफ़िया का दोष हो गया है न ! सिनाद दोष इसे नहीं कहते ?
’लता’ के पहले ’बद’ का ’द’ यानी अकारान्त और सानी में ’लता’ के पहले ’खि’ यानी इकारान्त.
भाई, देख लीजियेगा.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:22pm

आदरणीया महिमाजी नवाज़िशों के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:21pm

आदरणीय निलेश भैया आपका बहुत बहुत शुक्रिया आप स्वयं एक बहुत अच्छे ग़ज़लकार हैं इसलिये आपकी टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:19pm

आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:18pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आप जैसे वरिष्ठ रचनाकार से रचना की सराहना सदैव हर्ष का कारण होता है आपका तहे दिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2015 at 5:17pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ++++++   आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
18 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service