रोहित का आठवाँ जन्मदिवस है मम्मी पापा उत्साहित हैं, कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते उसके जन्म दिवस की पार्टी की तैयारी में, तन मन से लगे हैं ये सोचकर की शायद उनका लाडला नार्मल हो जाए उसके चेहरे पर एक बार मुस्कराहट वापस आ जाए|
पापा ने बड़े प्यार सेपूछा ”बोलो बेटा क्या लोगे ? जो भी तुम इस बर्थ डे पर मांगोगे मैं तुम्हे वही लाकर दूंगा"
” पापा मुझे एक तोता ला दो”|
सुनते ही जैसे पापा को पंख लग गए तुरंत एक तोते का पिंजरा ले आये| मम्मी पापा दोनों की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी चलो आज बच्चे ने कुछ तो माँगा शायद वो तोते को ही अपना दोस्त अपना हमराज बनाना चाहता हो|
फिर वो घड़ी आई जब केक काटना था रोहित अचानक अन्दर गया और पिंजरा उठाकर छत पर भागा सभी बच्चे व् बड़े भी उसी के साथ छत पर पंहुच गए|
इससे पहले कि पापा कुछ पूछते रोहित ने पिंजरा खोला और तोते को आकाश में उड़ा दिया|
उड़ते हुए तोते को देखकर रोहित के चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी वो पहले की तरह ताली पीट पीट कर हँस रहा था मम्मी पापा की आँखों में ख़ुशी के आँसू बह रहे थे|
किडनैपरों से रिहा होने के पूरे एक महीने बाद आज उनका बेटा हँस रहा था|
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
जितेन्द्र भैया,लघु कथा आपको पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |
बहुत ही सुंदर भाव ली हुई लघुकथा है आदरणीया राजेश दीदी. पूरी तरह कसावट ली हुई इस सफल लघुकथा पर बहुत-बहुत बधाई.
आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी,आप जैसे सजग लेखक और पाठक रचना को मिल जाए तो रचना धन्य हो जाती है आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ ,हृदय तल से आभार आपका|
आदरणीया राजेश जी ...आपकी लघुकथा बेहद पसंद आयी ..उधर तोते का पिंजड़े से उड़ना होता है इधर सुंदर भावों से रची इस रचना का दिल के पिंजरे में कैद होना होता है ...सच में स्वतंत्रता से बढ़कर कोई सुख नहीं हैं ..सबसे बड़ा मौलिक अधिकार ..ताजगी से भरी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
आ० सौरभ जी,लघु कथा पर आपकी उपस्थति व् सराहना मेरी लेखनी में नई परवाज भर गई.आपने मिथिलेश जी को जिस तरीके से सोदाहरण समझाया उसके सम्मुख नत हूँ मेरी लघु कथा पर आपका एक शब्द 'ग़ज़ब' ही मेरा प्रशस्ति पत्र है हृदय से बहुत- बहुत आभारी हूँ सादर.
ग़ ज़ ब...... !!!
नमन ..
आदरणीय मिथिलेश जी, आपके सुझाव के बरअक्स मेरा कहना है कि ऐसे शब्दों के प्रयोग की दो मान्यताएँ हैं.
एक के अनुसार वही जैसा आपने कहा है.
दूसरी मान्यता के अनुसार इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि जो विदेसज (?) शब्द भाषा में घुल मिल गये हैं. उनके प्रयोग में भाषा के सामान्य व्याकरण-नियम लागू होते हैं. जैसे, दो ट्रेनों में भिड़ंत ज़बरदस्त हुई थी. उस सभा के बाद हॉल में सभी टेबुलों के पाये टूट गये थे. आदि.
आदरणीया राजेश कुमारी जी ने जिस प्रवाह में किडनैपरों का प्रयोग किया है वह वाचन क्रम में चुभता नहीं.
इस परिप्रेक्ष्य में मैं किडनैपर्स के प्रयोग की तो कभी सलाह नहीं दूँगा.
व्याकरण के नियमों का पालन उचित है. परन्तु यह भी देखना है कि उसका प्रयोग कौन कर रहा है ! जब भावाभिव्यक्ति के स्तर पर बात होने लगे तो फिर तनिक हेरफेर बहुत अर्थ नहीं रखता. आदरणीया राजेशजी शब्द सम्बन्धी तथा व्याकरणीय अभ्यासों की लम्बी प्रक्रिया से गुजर चुकी हैं.. :-)))
सादर
महर्षि त्रिपाठी जी,आपको लघुकथा परफेक्ट लगी ,मेरा लिखना सफल हुआ ,दिल से आभारी हूँ |
आ० अखिलेश जी,लघु कथा को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ मेरा लेखन सफल हुआ दिल से आभारी हूँ|
शिज्जू भैया ,लघुकथा आपको पसंद आई दिल से आभार आपका.
विनय कुमार सिंह जी,आपकी न्याय संगत समीक्षा से प्रोत्साहित हूँ लघु कथा के भाव ने आपको प्रभावित किया मेरा लिखना सफल हुआ बहुत- बहुत शुक्रिया .
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