2122/ 2122/ 2122/ 212
बह गये तूफान में वो जा किनारे से लगे
लड़ने वाले ही मगर सब बेसहारे से लगे
हार के बाहर हुये वो चैन की अब साँस लें
जीतने की जो कहें मुझको वो हारे से लगे
बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ
ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे
लुट गया सामां सफर में हर मुसाफिर का यहाँ
लोग भी बेआस बेबस गम के मारे से लगे
कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”
राख से कुछ हर्फ़ कुछ उनमें शरारे से लगे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्यामनारायणजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया सविता मिश्रा जी आपका बहुत बहुत शु्क्रिया
जनाब समर कबीर साहब आप जैसे ग़ज़लगो तारीफ पाना उत्साह का कारण होता है आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज सर आपका तहदिल से शुक्रिया। आपके सुझावों का सदैव स्वागत है
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
वाह शिज्जू भाई वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद देता हूँ.
बढियां ग़ज़ल हुई आदरणीय शिज्जू सर !
बारहा मेरे करीब आकर ठहर जाते हैं यूँ
ये हवादिस मेरी किस्मत के इशारे से लगे - बहुत सुन्दर शेर हुआ है
कागज़ों पर है नुमायाँ हाले दिल मेरा “शकूर”
राख से कुछ हर्फ़ कुछ उनमें शरारे से लगे - वाह वाह और बस वाह ! लाजवाब
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