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अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले

221 2121 1221 212

अब और सब्र का तू मेरे इम्तिहाँ न ले

मेरी ज़मीं न छीन मेरा आसमाँ न ले

 

है मुख़्तसर ज़मीन तमन्नाओं की फ़क़त

ऐ बेरहम नसीब यूँ मेरा जहाँ न ले

 

कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा

इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले

 

जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं

मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले

 

कायम है कायनात शजर के वुजूद से

खुद को ही बेवुजूद न कर अपनी जाँ न ले

 

 मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 12:09pm

आदरणीय सौरभ सर रचना पर आपकी उपस्थिति हमेशा ही उत्साहित करती है, आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 4:55pm

शिज्जू भाई..  मैं मतले पर झूम-झूम रहा हूँ.
वैसे तो पूरी ग़ज़ल कमाल की हुई है लेकिन इन दो शेरों को विशेष तौर पर उद्धृत कर रहा हूँ -

कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा
इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले

जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं
मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले

दिल से दाद कुबूल कीजिये..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 23, 2015 at 3:55pm

मेरी रचना आप लोगों ने समय दिया सराहा, आपकी इन नवाज़िशों से मेरा हौसला बढ़ा है आप सभी का मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ और ये उम्मीद करता हूँ आप सभी का स्नेह ऐसे ही मिलता रहेगा

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 1:24pm

आदरणीय शिज्जू भाई

मतले से ही आपने रफ़्तार पकड़ ली और अंत तक बस मजा आ गया . आपका एक और करिश्मा. सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 8:35am
जज़्बात से न बाँध मुझे ऐसे हमनशीं
मत रोक लफ़्ज़ मेरे यूँ मेरी ज़बाँ न ले
बहुत खूब, शानदार, बधाई, आदरणीय शिज्जु शकूर जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on April 22, 2015 at 6:08pm
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,ख़ूबसूरत,पुख़्ता,मुकम्मल,कामयाब ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 22, 2015 at 4:08pm

आदरणीय शिज्जु भाई , पूरी ग़ज़ल बेमिसाल  अशआर  से सजी है , पूरी गज़ल के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 22, 2015 at 1:48pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आनंद आ गया ..इस सफल सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:26am

ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं शिज्जू जी, दाद कुबूल करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 10:20am

वाह! शानदार गजल कही आदरणीय शिज्जू जी.

कम रख ज़रा तू अपनी रवानी को ऐ हवा

इतना रहम तो कर कि मेरा आशियाँ न ले.......क्या बात है ,सर जी. विशेष बधाई स्वीकारें

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