बेरोजगारी निवारण विधेयक वापस लो.. वापस लो, सरकार की मनमानी नहीं चलेगी...नहीं चलेगी.....
“मम्मी मम्मी जल्दी आओं, टीवी पर पापा को दिखा रहे हैं.”
“अच्छा....”
“मम्मी ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं बेटा, शाम में जब तेरे पापा आयेंगे तो पूछ कर बताउंगी.”
“सुनिए जी, आज आपको मुन्ना टीवी पर देख बहुत खुश हो रहा था. वैसे एक बात बताइये ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं यार, मैंने नहीं पढ़ा.”
“फिर आप इसका विरोध क्यों कर रहें है.”
“अरे गज़ब बात करती हो ! अब क्या तुम्हे यह भी बताना होगा कि मैं विरोधी दल का नेता हूँ.”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
बस यही हो रहा है दशकों से , विरोध के लिये विरोध ! बहुत खूब आदरणीय बागी जी , हार्दिक बधाई लघुकथा के लिये ॥
आदरणीय बागी सर ..यथार्थ को चित्रित करती इस शानदार लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय बागी जी ..नेता का काम नेतागिरी है ...समझ का क्या काम ....सटीक
हाहा..आज के संदर्भ में सटिक कटाक्ष... बहुत बहुत बधाई आपको
लघुकथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी.
एक लघुकथाकार की सकारात्मक टिप्पणी पाकर हृदय प्रसन्न है, बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र जी.
आदरणीया राजेश जी, आपकी उपस्थिति और विवेचनात्मक टिप्पणी से लघुकथा कुछ और समृद्ध हो गयी, बहुत बहुत आभार आदरणीया.
बेहतरीन लघुकथा,गंभीर विषय पर सार्थक और सरस प्रस्तुति!
अपना पूर्ण प्रभाव छोडती ,बहुत ही बेहतर लघुकथा, सर. सच! माने तो आजकल यही सब देखने को मिल रहा है. प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें
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