बेरोजगारी निवारण विधेयक वापस लो.. वापस लो, सरकार की मनमानी नहीं चलेगी...नहीं चलेगी.....
“मम्मी मम्मी जल्दी आओं, टीवी पर पापा को दिखा रहे हैं.”
“अच्छा....”
“मम्मी ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं बेटा, शाम में जब तेरे पापा आयेंगे तो पूछ कर बताउंगी.”
“सुनिए जी, आज आपको मुन्ना टीवी पर देख बहुत खुश हो रहा था. वैसे एक बात बताइये ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं यार, मैंने नहीं पढ़ा.”
“फिर आप इसका विरोध क्यों कर रहें है.”
“अरे गज़ब बात करती हो ! अब क्या तुम्हे यह भी बताना होगा कि मैं विरोधी दल का नेता हूँ.”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
ना मुद्दे का पता ना कोई सरोकार,न पूर्णतः समझने की चाह बस भेड़ की चाल चलते अपने विरोधी दल की शक्ति प्रदर्शन में लिप्त ....और इनसे उम्मीद भी क्या कर सकते हैं बहुत बढ़िया ,,,लघु कथा का इशारा सामयिक मुद्दे की तरफ हुआ है ...बहुत बढ़िया
बहुत- बहुत बधाई इस सशक्त लघु कथा के लिए आ० गणेश बागी जी.
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना युक्त टिप्पणी सदैव प्रोत्साहित करती है, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, लघुकथा आपको अच्छी लगी, लेखक को बल मिला, बहुत बहुत आभार.
आ० बागी जी
सुन्दर रचना . विरोधी दल के नेता हैं तो विरोध करना जन्म सिद्ध अधिकार है , प्रजा के भलाई से क्या मतलब ? सादर .
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