For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुफाइलतुन मुफाइलतुन मुफाइलतुन

 

हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी

सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी

 

निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें

कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी                    *कृपा

 

न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब                  *दिल को तसल्ली देनेवाला

ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी

 

उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे मर्ग                     *मौत के पीछे

कुछ ऐसे ही काम आयेगी ये हयात मेरी

 

वो दार* पे चढ़ गया था ये कहते कहते “शकूर”            *सूली

ले आयेगी इन्किलाब नया वफ़ात* मेरी                      *मौत

 

-मौलिक व अप्रकाशित

 

 

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2015 at 6:58am

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 27, 2015 at 7:25pm
यूँ तो पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है , इसकी बात बहुत ही गहरी है ,
न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब
ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय शिज्जू शकूर जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 27, 2015 at 12:59pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है. बहुत ही कठिन बह्र को आप बड़ी सहजता से निभा गए. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

 

हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी

सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी...... वाह बेहतरीन मतला

 

निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें

कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी        .... वाह उम्दा शेर             

 

न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब                  

ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी...... क्या खूब कहा है, तन्हाई को कमाल के

 लफ्ज़ मिले है

उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे जाँ                 

कुछ ऐसे ही काम आयेगी ये हयात मेरी..... कुछ+ऐसे.... अलिफ़-वस्ल का सुन्दर प्रयोग... बहुत खूब

 

वो दार* पे चढ़ गया था ये कहते कहते “शकूर”            

ले आयेगी इन्किलाब नया वफ़ात* मेरी          ......   बेहतरीन मक्ता

 

 

भाई जी इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं.

इस बह्र की लय न पकड़ पाने के कारण मैंने प्रयास नहीं किया, यदि किसी गायक द्वारा गाई गई कोई ग़ज़ल  आपके ध्यान में हो तो कृपा कर जुरूर साझा कीजियेगा. एक शंका है समाधान के निवेदन के साथ

 - इस बह्र को वाफर कहते है या वाफ़िर ?

सादर

 

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 27, 2015 at 12:00pm

न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब               

ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी........वाह! बहुत खूब, सर. दिली बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
4 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
30 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
35 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service