मुफाइलतुन मुफाइलतुन मुफाइलतुन
हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी
सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी
निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें
कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी *कृपा
न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब *दिल को तसल्ली देनेवाला
ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी
उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे मर्ग *मौत के पीछे
कुछ ऐसे ही काम आयेगी ये हयात मेरी
वो दार* पे चढ़ गया था ये कहते कहते “शकूर” *सूली
ले आयेगी इन्किलाब नया वफ़ात* मेरी *मौत
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है. बहुत ही कठिन बह्र को आप बड़ी सहजता से निभा गए. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
हयात मेरी न लज़्ज़ते कायनात मेरी
सहर को है वक्त और सियाह रात मेरी...... वाह बेहतरीन मतला
निचोड़ के खून तक मेरे जिस्म से वो कहें
कि बख़्श दी जान देखिये इल्तिफ़ात* मेरी .... वाह उम्दा शेर
न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब
ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी...... क्या खूब कहा है, तन्हाई को कमाल के
लफ्ज़ मिले है
उतरने लगेंगे खोल वफ़ा के अब पसे जाँ
कुछ ऐसे ही काम आयेगी ये हयात मेरी..... कुछ+ऐसे.... अलिफ़-वस्ल का सुन्दर प्रयोग... बहुत खूब
वो दार* पे चढ़ गया था ये कहते कहते “शकूर”
ले आयेगी इन्किलाब नया वफ़ात* मेरी ...... बेहतरीन मक्ता
भाई जी इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं.
इस बह्र की लय न पकड़ पाने के कारण मैंने प्रयास नहीं किया, यदि किसी गायक द्वारा गाई गई कोई ग़ज़ल आपके ध्यान में हो तो कृपा कर जुरूर साझा कीजियेगा. एक शंका है समाधान के निवेदन के साथ
- इस बह्र को वाफर कहते है या वाफ़िर ?
सादर
न दोस्त न दिलनवाज़* रहा कोई मेरा अब
ख़ुदा से ही कहता हूँ मैं हर एक बात मेरी........वाह! बहुत खूब, सर. दिली बधाई आपको
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