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धरती के सीने में
अमृत छलकता है
धरती के ऊपर पानी है
अन्दर भी पानी है
ये धरती की मेहेरबानी है
कि बादल में पानी है
बादल तरसते हैं
तो धरती अपना पानी
नभ तक पहुंचा
उनकी प्यास बुझाती है
बादल बरस कर
एहसान नहीं करते
सिर्फ़ बिन सूद
कर्ज चुकाते हैं
क्यूंकि पानी तो वो
धरती से ही पाते हैं
फिर भी धरती पर गरजते हैं
बिजली गिराते हैं
जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही बताया था
परमार्थ का बीज बोया तो
फल स्वार्थ का उग आया था !!

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मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 9:36pm

वाह वाह बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हेतु  हार्दिक बधाई, आदरणीय मोहन सेठी जी , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 28, 2015 at 6:51pm
परमार्थ का बीज बोया तो
फल स्वार्थ का उग आया था !!
सुन्दर प्रस्तुति , बधाई, आदरणीय मोहनसेठी जी , सादर।
Comment by shree suneel on April 28, 2015 at 5:12pm
आदरणीय मोहन सेठी जी, इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.
/जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही... सही बात
Comment by Shyam Narain Verma on April 28, 2015 at 10:30am
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

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