अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है
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मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है
अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी
तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं
कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे
दुनिया को
लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,
इस उजाले की पहुँच बाहरी है
किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी
भ्रम में न रहें
कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते हैं
भय देते हैं , तोड़े जाने से सजा का
शारीरिक कष्टों का भय
लेकिन ,
समरथ के लिये तो गोसाईं जी ने कह ही दिया है
आप भ्रम में न रहें
लेकिन आपको जानना चाहिये कि ,
इनकी पहुँच आपकी सोच तक नहीं है ,
संस्कारों तक तो और भी नहीं
आज़ादी एक ज़हरीली दवा है
स्वाद में अच्छी है
मात्रा संतुलित हो तो फायदा भी बहुत करती है
असंतुलन के नुक्सान भी हैं
मै चाहता हूँ दवा फायदा करे
लेकिन कैसे ?
दवा स्वाद में मीठी जो है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , मै एक विद्यार्थी हूँ , और आप मुझसे ज्ञान में बड़े हैं , इसलिये आपका प्रणाम तो स्वीकर नही सकता लेकिन इसमे छिपे आपकी सराहना स्वीकार करता हूँ , और मै अब अपनी मेहनत को सफल पा रहा हूँ , आनन्दित हूँ , और आपकी प्रतिक्रिया को घर के सभी सद्स्यों को पढ़ा भी रहा हूँ ॥ आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
आदरणीय गिरिराज भाईजी, एक अरसे से आपकी इस कविता पर अपनी बात कहना चाह रहा था. परन्तु, रोज़-रोज़ कर समय निकला जा रहा था.
इस कविता केलिए आपको मैं पुनः प्रणाम करता हूँ.
इंगितों में जिस ढंग से व्यंग्य को पिरोया गया है वह इस कविता की धार को और प्रखर कर रहा है. आजके लोगों का व्यवहार वस्तुतः पिछले चालीस-पैंतालिस वर्षों के समवेत आचरण का प्रतिफल है. इस अव्यावहारिक लेकिन अपना लिये गये आचरण के कारण आज के लोगों का न केवल बर्ताव और व्यवहार बल्कि उनके व्यवहार में स्वतंत्रता का, इतना कि उनके लिए पूरे जीवन-दर्शन का अर्थ बदल कर रह गया है. आपकी कविता जिन विन्दुओं की ओर इशारा करती है, ऐसे विन्दु हाशिये पर जा रहे हैं और कवि-पाठक दोनों चुप बने हैं. ’यह संक्रमण काल है’ इसकी बात सभी करते हैं .. लेकिन इस संक्रमण काल का कारण कौन हैं इस ओर कोई देखना चाहता, समझनेकी बात ही जुदा है.
इस वैचारिक प्रयास को साझा करने के लिए हार्दिक बधाइयाँ व अशेष शुभकामनाएँ.
बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचाना के अनुमोदन के लिये ॥
बहुत सुंदर,सर. स्वतंत्रता को संतुलित /असंतुलित करती मापदंड को बखूबी उभारा है आपने. बहुत-बहुत बधाई
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ...आपका एक और अनोखा अंदाज़ .इस सुंदर सार्थक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आप जैसे विद्वान की सराहना ने रचना को सार्थकता प्रदान कर दी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपक आभारी हूँ ॥
आ. बड़े भाई विजय जी , रचना को आपका आशीष मिला तो रचना धन्य हो गई , आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय केवल भाई ,आपकी सराहना ने रचना का मान बढ़ा दिया , आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
वाह वाह ----- अनुज
बेमिसाल लिखते है आप i कहाँ से शुरू और कहाँ पर ख़त्म . दाद तो बनता है भाई. सादर
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