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दरवाज़े पर देखो कोई आया क्या ?
अपने हिस्से का कोलाहल लाया क्या ?
ख़ँडहर जैसा दिल मेरा वीराना, भी
खनक रही इन आवाज़ों को भाया क्या ?
कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को
इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ?
फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर
छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ?
सारे पत्थर आईनों पर टूट पड़े
कोई पत्थर ,पत्थर से टकराया क्या ?
जुगनू सहमा सहमा सा क्यों लगता है
कोई सूरज फिर उसको धमकाया क्या ?
खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे
किसी समस्या का निदान भी पाया क्या ?
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गिरिराज भंडारी
Comment
अहा हा हा ! मजा आ गया! इस गजल ने तो नये पाट खोल दिए...शानदार! गज़ल ऐसा लगता है किसी मंझे हुए नौजवान गजलगो ने लिखी है! आदरणीय गिरिराज सर आपकी नौजवानी को सलाम! लगता है होली के हुलास का असर लिए हुए है ये गज़ल!
खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे
किसी समस्या का निदान भी पाया क्या ? क्या बात है सर!
कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को
इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ? क्या कहने! क्या कहने!
फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर
छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ? बडी बात इतने सरल लहजे में! उम्दा!
जुगनू सहमा सहमा सा क्यों लगता है
कोई सूरज फिर उसको धमकाया क्या ? वाह!
गज़ल के भाव अच्छे लगे। हार्दिक बधाई।
सौरभ जी के विचारों से सीखने को मिला, उनका आभारी हूँ।
आदरणीय गिरिराज सर बहुत सुंदर रचना हुई है हर शेर पुरअसर है, पहले तो दाद कुबूल फरमायें।
आखिर शे'र को ज़रा देखिये
खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे
किसी समस्या का निदान भी पाया क्या ?--> यहाँ थो़ड़ा अटकाव है इस शेर को यूँ करें तो
खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे
सागर से कोई प्यास बुझा पाया क्या
वैसे और भी गुँजाइश है ज़रा विचार कीजियेगा
खूबसूरत भाव आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ....सादर
आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई, उचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय दिनेश भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
शुक्रिया ! आदरणीय सौरभ भाई , रस्सी बाल्टी खींचने मे सहारा देते रहियेगा ॥
वाह! बहुत खूब, सर. हर शेर कमाल का कहा है आपने. दिली बधाई कुबुलें
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