1222/1222/1222/1222
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ *रक्त पिपासु
तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले
मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो *आदी
बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया माला झा जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया महिमाश्री जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया जानकारी देने के लिये। यहाँ मैंने वहम का प्रयोग दानिस्ता किया है। उर्दू में भी ब्राहमण को बिरहमन लिखा और पढ़ा जाता है। भ्रम को भरम कहा गया है। तो फिर मैं वहम का वज्न 12 क्यों न लूँ। जबकि अब उर्दू हिन्दी के साथ घुलमिल गई है। जब उर्दूदाँ अपनी सुविधा के लिये हिन्दी अल्फ़ाज़ को अपने हिसाब से लिखते हैं तो मेरा प्रयोग भी गलत नहीं होना चाहिये क्योंकि वहम शब्द हिन्दी में घुलमिल गया है।
माजरत के साथ
आहा हा ..चचा की ज़मीन पर भतीजे का कमाल देखते ही बनता है ..
क्या कहने वाह वाह वाह
हरम मैंने भी कई ग़ज़लो में मस्जिद के रूप में सुना है
दैर-ओ- हरम में बसने वालो
मैख़ानो में फूट न डालो.
शिज्जू भाई आपको बहुत बहुत बधाई
आदरणीय शिज्जू जी ..बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है ..आपकी ग़ज़ल पर आदरणीय कबीर जी की प्रतिक्रिया से हरम शब्द के तमाम अर्थ पता चले लेकिनमैंने भी कई जगह हरम का मतलब मस्जिद पढ़ा है ..मुझे शेर याद नही आ रहे हैं ये जानकारी मेरे लिए भी नयी है ..आपको इस शानदार ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई सादर
मधुर बह्र में लाजवाब और शानदार ग़ज़ल
दाद दाद दाद भाई जी
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