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मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ *रक्त पिपासु
तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले
मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो *आदी
बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
क्या बात है ! आदरणीय शिज्जु भाई , हर शे र जानदार है , और सुधारे हुये शे र भी पहले से जियादा अच्छे हुये हैं ॥ आपको हृदय से बधाइयाँ पूरी गज़ल के लिये ॥
मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले ...बहुत खूब ..
बहुत खूबसूरत .गज़ल है..बहुत बहुत बधाई आपको
जनाब समर कबीर साहब सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत शुक्रिया। जी आपने हरम के जो मतलब बताये वो मुझे पता थे लेकिन मैंने कई उस्ताद शुअरा की किताबों में हरम को मस्जिद के अर्थों में प्रयुक्त होते देखा है, हालाँकि ये कितना सही था ये मुझे नही मालूम,आपका बहुत बहुत शुक्रिया। दूसरे हर्फ़े इजाफ़त को लेकर मैं अब भी मुतमईन नहीं हूँ चूँकि आपका इल्मो तज्रिबा दोनों जियादा है इसलिये आपका सुझाव सर आँखों पर दोनों इस्लाह कुबूल करता हूँ और जल्द ही दोनो मिसरे बदल के फिर पोस्ट करता हूँ।
आदरणीय उमेश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
----------------वाहहहहहहहहह जबरदस्त साहेब
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