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सभी आदरणीय पाठको से -
अभी आदरणीय समर भाई जी से फोन में बात हुई तो उन्होने बताया कि उनके यहाँ नेट ओपन बुक्स आन लाइन नहीं खोल पा रहा है , ऐसा ही एक बार मेरे साथ भी हो चुका है । उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के लिये सभी से क्षमा मांगी है । सादर निवेदन ।
आदरनीय समर भाई , बहुत सतीक बात कही , तनकीद निगारी तलवार की धार मे चलने जैसा काम है , कुछ छोट गया कहने तो हम कटे और अनावश्यक कुछ कह दिये तो सामने वाले की गर्दन कटी ॥ आपको रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय समर कबीर जी एक आलोचक पर बहुत सुन्दर नज्म हुई . हार्दिक बधाई
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