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"कितने शर्म की बात है, हमारे आका लोग दुनिया भर से अरबों खरबों भेज चुके हैं, मगर तुम लोग फिर भी आज तक हिन्दुस्तान के टुकड़े नही कर पाए।"
"हमने हरचन्द कोशिश की, मगर ....."
"मगर क्या ?"
"ये लोग टूटते ही नहीI"
"क्यों नही टूटेंगे ? तुम इनको धर्म के नाम पर क्यों नही तोड़ते?"
"हम कश्मीर और पंजाब समेत कई जगहों पर ये कोशिश पहले ही कर चुके हैं सर।"
"कोशिश कर चुके हो तो कामयाब क्यों नही हुए अब तक?"
"क्योंकि इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है सर।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 6, 2015 at 10:53am

बुनियाद  मजबूत हो तो तीव्र भूकंप के झटके भी झेलने में सक्षम | आपसी सद्भाव और प्रेम की बुनियाद पर टिके घर परिवार और देश को कौन तोड़ सकता है | अति सुंदर भावपूर्ण संदेश देती लघु कथा के  लिए बधाई आद. योगराज जी | सादर 


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Comment by rajesh kumari on May 6, 2015 at 10:24am

एक बार नहीं बहुत बार और बहुत से देशों ने तोड़ने की कोशिश की पर तोड़ नहीं पाए कारण आपकी लघुकथा की ये पंच लाइन जो एक अटूट सत्य है काश ये बुनियाद आगे भी और भी मजबूत होती जाय.बहुत सुन्दर प्रेरक लघुकथा लिखी है आ० योगराज जी,दिल से बधाई |  

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 6, 2015 at 10:03am

''इस देश की बुनियाद नफ़रत पर नही प्रेम पर रखी गई है सर।"

बहुत सुन्दर लघुकथा हुयी है आ० योगी सर!हार्दिक बधाई प्रेषित है!

Comment by Omprakash Kshatriya on May 6, 2015 at 7:54am

आदरणीय योगराज जी 

आप ने वास्तव में बनियाद की मजबूती बता दी .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 12:06am

बहुत सुंदर लघुकथा, आदरणीय योगराज जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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