For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- चराग़ किसका जला हुआ है - ( ग़िरिराज भंडारी )

121  22     121  22        121  22   121  22

 

ये कैसी महफिल में आ गया हूँ , हरेक इंसा , डरा हुआ है 

सभी की आँखों में पट्टियाँ हैं , ज़बाँ पे ताला जड़ा हुआ है

 

कहीं पे चीखें सुनाई देतीं , कहीं पे जलसा सजा हुआ है

कहीं पे रौशन है रात दिन सा , कहीं अँधेरा अड़ा हुआ है

 

ये आन्धियाँ भी बड़ी गज़ब थीं , तमाम बस्ती उजड़ गई पर  

दरे ख़ुदा में झुका जो  तिनका , वो देखो अब भी बचा हुआ है 

 

हरेक बज़्में तरब के कारण , न जाने कितनी ग़मी है यारों  

उठा हुआ है जो आसमाँ तक ,   किसी गदा पर ख़ड़ा हुआ है

 

यहाँ हवाओं की खुश्बुओं में , क्यों याद आयी , मेरी ज़मीं की

ज़रा सा खोदो तो इस ज़मीं को , कहीं पे माज़ी गड़ा हुआ है

 

जहाँ पे मुद्दत की प्यास चुप है , वहाँ बग़ावत सुलग न जाये  

के अब हथेली बने न मुठ्ठी , डर एक उनको बना हुआ है

 

अजब अँधेरे में इस फ़ज़ा के , ये रोशनी सी कहाँ से आई

ये रूह किसकी हुई है रोशन , चराग़ किसका जला हुआ है

*******************************************************

 मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 11:42am

आदरणीय नीलेश भाई , आपकी ग़ज़ल पर उपस्थिति और उचित सलाहों के लिये बहुत शुक्रिया । कुछ सुधार जो अभी सूझ रहे हैं मै अभी कर रहा हूँ । पुनः आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 11:40am

आदरणीय कृष्णा भाई , आपकी नवाजिश का बहुत शुक्रिया ॥

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2015 at 11:22am

ये आन्धियाँ भी बड़ी गज़ब थीं , तमाम बस्ती उजड़ गई पर  

दरे ख़ुदा में झुका जो  तिनका , वो देखो अब भी बचा हुआ है

खूबसूरत भाव , प्रेरक , शिक्षाप्रद और सुन्दर गजल ...बधाई
भ्रमर ५

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 10:53am

बहुत सुंदर भाव पिरोए हैं आपने ग़ज़ल में. आपको बधाई  
हरेक सहमा , डरा हुआ है  में कुछ अस्पष्टता है ..हरेक इंसाँ डरा हुआ है कर के देख सकते हैं .
कहीं पे रौशन है रात दिन सा में लिंग बदल गया वाक्य का यूँ कर सकते हैं कहीं पे रौशन है रात सा दिन

ये आन्धियाँ भी बड़ी गज़ब थीं , तमाम बस्ती उजड़ गई पर  

दरे ख़ुदा में झुका जो  तिनका , वो देखो अब भी बचा हुआ है 
बहुत भावपूर्ण शेर है ..विशेष बधाई 

हरेक बज़्में तरब के कारण , न जाने कितनी ग़मी है यारों  

उठा हुआ है जो आसमाँ तक , वो लाश ऊपर ख़ड़ा हुआ है.....अच्छा भाव है लेकिन ग़ज़ल में लाश जैसे शब्द का प्रयोग थोडा खल रहा है.
अजीब अँधेरे में इस फ़ज़ा के   इस बेबह्र कर रहा है मिसरे को 
ये रूह किसकी हुई (है) रोशन ...
कठिन बहर पर अच्छा काम किया है.
आपको बधाई फिर एक बार 
सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 6, 2015 at 10:12am

वाह ! वाह! वाह! आदरणीय बहुत ही लाजवाब गजल हुई है अभिनन्दन!

ये शेर विशेष पसंद आये--

यहाँ हवाओं की खुश्बुओं में , क्यों याद आयी , मेरी ज़मीं की

ज़रा सा खोदो तो इस ज़मीं को , कहीं पे माज़ी गड़ा हुआ है          लाजवाब!

 

जहाँ पे मुद्दत की प्यास चुप है , वहाँ बग़ावत सुलग न जाये  

के अब हथेली बने न मुठ्ठी , डर एक उनको बना हुआ है             वाह! वाह! वाह! बेहद उम्दा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service