1212 1122 1212 22 /112
चली गई मेरी मंज़िल कहीं पे चल के क्या
या रह गया मैं कहीं और ही बहल के क्या
वहाँ पे गाँव था मेरा जहाँ दुकानें हैं
किसी से पूछता हूँ , देख लूँ टहल के क्या
असर बनावटी टिकता कहाँ था देरी तक
वही पलों में तुम्हें रख दिया बदल के क्या
हरेक हाथ में पत्थर छुपा हुआ देखा
ये गाँव फिर से रहेगा कभी दहल के क्या
मेरा ये घर सही मिट्टी, मगर ये मेरा है
मुझे न पूछ थे अरमाँ कभी महल के क्या
मुझे लगा कि अब , सूरज उदास रहता है
चलो तो पूछें, वो रोता रहा था ढल के क्या
बहक ही जाने दो मुझको, कि अब बचा क्या है
ये लम्हें आखिरी हैं अब करूँ सँभल के क्या
परों का साथ नहीं है जिसे उड़ानों में
तुम्हीं कहो वो करे फर्श पे उछल के क्या
**************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराजभाईजी,
आपके पास अचार के लिए माल भी है और आवश्यक मसाला (अनुभव, भाव और शब्द) भी हैं. बस उनकी आनुपातिकता को तय करना है और पगने देना है. आप धूप में मर्तबान को छोड़िये और रोज़ थोड़ा-थोड़ा हिलाते रहिये, चलाते रहिये.
पानी या नमी (तुरत प्रकाशित कर देने की ललक) से इसे एकदम से बचा कर रखिये. देखियेगा, कुछ दिनों में स्वादिष्ट अचार तैयार जिसके चटखारे पर आपके चाहने वाले मर मिटेंगे.
मैं उनकी बात नहीं कर रहा जिन्हें अचार के नाम से ही अलसर होने का शुबहा हो जाता है. या, जो अचार-अचार में फ़र्क़ करते हैं, आम का सही, सूरन का बेकार, मसालेदार मिर्ची वाह-वाह, नींबू वाला सत्यानाश... हा हा हा...
आदरणीया सविता जी , सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
आदरणीय सौरभ भाई , हौसला अफज़ाई और सटीक मशविरे के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ आदरणीय अचार बना सकूँ ये मेरी भी इच्छा है , पर मसाला क्या डालूँ ये तो आप गुणि जन ही बतायेंगे न ! बस कृपा दृष्टि बनी रहे धीरे धीरे सुधर जाऊँगा ॥ पुनः आभार आपका ।
आदरणीया कांता जी , उत्साह वर्धन एक लिये आपका दिल से आभारी हूँ ॥
आदरणीय भैया बहुत सुन्दर गजल ..सादर नमस्ते
एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल जिसे और पगना था. अब अपनी ग़ज़ल को अचार की तरह पगाइये आदरणीय.
सादर
आदरणीय श्री सुनील भाई, ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय केवल भाई जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय बड़े भाई , आपका बहुत बहुत आभार ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online