For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इनकार कितना भी कर लें

दिल पर हाथ रख कर पूरी इमानदरी से सोचेंगे तो आप भी कहेंगे

हम भावनाओं की दुनिया में जीते हैं

और ये सच हो भी क्यों न , एकाध अपवाद छोड़कर

हम सब दो पवित्र भावनाओं के मिलन का ही तो परिणाम हैं

 

भावनायें गणितीय नहीं होतीं

कारण और परिणाम दोनों का गणितीय आकलन नामुमकिन है

हम सब ये जानते हैं , फिर भी

दूसरों के मामले में हम सदा गणितीय हल चाहते हैं ,

अक्सर रोते बैठते हैं , दो और दो चार न पा के

उत्तर कुछ भी निकल आता है , पाँच , सात या और कुछ

और सच तो ये है कि ,

यही हम सभी का सच है

लेकिन हमें दो और दो पाँच स्वीकार है 

अगर जोड़ हमारी भावनायें करें तो

विरोध , आश्चर्य और दुख दूसरों के उत्तर पाँच  आने पर है

 

इसी बदनीयती का ही तो परिणाम है ,कि  

स्वीकार की जा रहीं है

सार्वभौमिक सच की तरह  

और बिना जाँचे परखे  हाथ उठ रहें है स्वीकार में 

अगर बात अपने के मुँह से निकली हो  

 

आज बात किसने कही महत्वपूर्ण हो गई है ,

बातें क्या कही जा रहीं हैं गौण

 

छटपटा रहीं है छोटे मुँह से निकली बड़ी महत्वपूर्ण बातें

स्वीकृति के लिये

और किसी नामवर नें मुँह फाड़ा नहीं कि, बात सर पे उठा ली जाती हैं

उदाहरण बनाये जा रहे हैं

आज की अपनी ग़लती को सच साबित करने के लिये

अपनों से जुड़ाव कैसा भी हो

भावनात्मक , राजनीतिक , व्यापारिक या और कुछ

उनकी कही बातें आपके लिये सही भी है ,

और पत्थर की लकीर की तरह अमिट भी

फिर चाहे वो कितनी भी घातक क्यों न हों , परिणाम से  

 

मुझे तो दुख है , अफफोस है ,

होना तो आपको भी चाहिये ,

पर क्या पता ?

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 528

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 6:24pm

मनुष्य की मूल दशा आत्मकेन्द्रित ही होती है. वह स्वयं के संदर्भ से ही जगती को महसूस करता है. यही इसका मूल गुण है. फिर भी सार्थक वाङ्मयों में मानवधर्म इसके परे जाने की बात करता वर्णित है. आदर्श और सिद्धांत यदि मूल-व्यवहार के विपरीत बातें करते दिखते हैं तो सामान्य जन के लिए वैचारिक उथल-पुथल अवश्यंभावी है. इसी उथल-पुथल का परिणाम है मोह. इसी मोह के कारण अपनों की सहज स्वीकार्य बातें दूसरों के मुँह से निकलते ही घृणास्पद व त्याज्य हो जाती हैं. उनमें चाल का संधान प्रतीत होने लगता है. चाहे दूसरे की बात कितनी ही मार्गदर्शी क्यों न हो. यही तथ्य इस कविता में अंतर्धारा की तरह बहता है.

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी इस कविता के होने पर हार्दिक बधाइयाँ.

वैसे, एक तथ्य अवश्य संभाव्य बनायें कि वैचारिक कविताओं का कसा जाना आवश्यक है. अतः प्रयुक्त शब्दों या भाव-शब्दों में दुहराव तब ही हो जब उस पर पाठक का ध्यानाकर्षण अपरिहार्य लगे.
एक अच्छी कविता और रचनाप्रयास के लिए पुनः हार्दिक बधाइयाँ.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 13, 2015 at 6:22pm

आदरनीय मिथिलेश भाई ,आपका बहुत बहुत आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 13, 2015 at 6:21pm

आदरणीय मोहन सेठी भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 13, 2015 at 6:20pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 13, 2015 at 7:39am

भावनाओं की दुनिया और हमारी अपेक्षाओं का प्रभावी वर्णन किया आपने इस सुंदर प्रस्तुति में ...सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 6:25am
आदरणीय गिरिराज सर एक और बेहतरीन अतुकांत कविता की हार्दिक बधाई।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:08am

बहुत बढ़िया रचना ,सर. अपना पूर्ण सार ,स्पष्ट करती है. बहुत-बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:13pm

आदरणीय विजय भाई , इस वैचारिक रचनाकेअनुमोदन केलिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:12pm

आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:10pm

आदरणीय समर कबीर  भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया  ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service