मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जग की वह आधार (दोहें)
माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर
माँ का जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |- 1
माँ ही ईश की प्रतिनिधि, देवी सा सम्मान
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते है गुणगान |-2
उठते ही नित भोर में, माँ को करें प्रणाम,
माँ के चरणों में बसे, चारों तीरथ धाम | - 3
पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से ही होता उसे, सब रिश्तों का बोध | - 4
सरका कर तन से वसन, पीता दूध अबोध,
आंचल से शिशु दूध पी, करें सुधा सा बोध |- 5
शिशु को आँचल में ढकें, ह्रदय प्यार अनमोल,
प्यास बुझाती स्नेह कर, लेती चूम कपोल | - 6
सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,
माँ का पौष्टिक दूध ही, जीवन का आधार |- 7
माँ ही माता शारदा, सद्गुण की वह खान,
भरे नेह की छाँव में, मुख से बरसे ज्ञान | -8
माँ स्वरूप को जानना, सचमुच टेडी खीर,
धीरज धरती माँ सदा, कभी बहुत गंभीर | -9
सृष्टि बसे क्या माँ बिना, जग की वह आधार,
माँ के आँचल में बसा, दुनिया भर का प्यार | -10
(मौलिक अ अप्रकाशित)
Comment
सही कह रहे है आदरणीय, भारत की सम्रद्धि और विकसित ज्ञान कौशल जिसके कारण यह देश जगत गुरु रहा और ज्ञान पिपासु यहाँ आया करते थे, कालान्तर में स्वार्थवश "सिखाने" की कम होती गई प्रवर्ती के कारण ही विधाएं लुप्ती होती गई | खैर ये लंबा विषय है | - कुछ प्रयास विचारार्थ प्रस्तुत है आदरणीय -
माँ की ममता कोख की सहती रहती पीर
माँ के जैसा कौन है इस जग में गंभीर .... माँ के जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |
पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध, - पलकर माँ की गोद में, खिलता कुसुम वसंत,
माँ से होता है हमें, रिश्तों का भी बोध | - माँ ममता की छाँव में,, मिलता सकूँ अनन्त |
सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार, - सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,
माँ में भरी मिठास ही, देती सुखद बयार | माँ के तन का दूध ही, जीवन का आधार |
जो कुछ सीख मुझे मिलती आई है उसका कुछ अंश भी मैं दे सकूं, तो अपने आपको सौभाग्यशाली ही समझूंगा आद सौरभ जी |
सादर
//इसीलिए तो आपकी प्रतिक्रिया की प्यास बनी रहती है | वर्ना तो सराहते तो सभी है //
आपकी सदाशयता और मुझ पर इस भरोसे के लिए हृदय से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी. रचनाओं को बस सराहना और रचनाकारों के गुड-बुक में आना, रचनाकारो की नज़रों में अच्छा बनना.. किसे अच्छा नहीं लगता. किन्तु जानते-बूझते किसी को उसकी कमियों के प्रति अगाह न करना मेरी दृष्टि में घृणित चौर्यकर्म है.
जितना जानता हूँ उतने भर का प्रयास करता हूँ. इसी क्रम में मेरा कितना सीखना हो जाता है, यह मुझसे पूछिये.
दूसरे, यही तो इस मंच का उद्येश्य है -- सीखना-सिखाना. यह अलग बात है कि कुछ लोग इस द्वंद्व शब्द से मात्र पहले भाग पर ध्यान रखते हैं. यथोचित ’सीख’ जाते ही उनका स्वार्थ उनपर हावी हो जाता है. या, मेरे जैसों के ऐसे प्रयासों को ’दिखावा’ या ’शेखी बघारना’ समझते और समझवाते हैं.
खैर, हम जैसों को इसकी कोई परवाह नहीं है. यदि नहीं परवाह है तभी तो यह मंच आज भी सोत्साह अनवरत है !
आइये हम कुछ साझा करें --
माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर
माँ का जैसा कौन है,इस जग में गंभीर |
माँ की ममता कोख की सहती रहती पीर
माँ के जैसा कौन है इस जग में गंभीर ....
लेकिन पहले पद में ’पीर’ को सहने के क्रम में दूसरा पद मात्र खाना-पूर्ति लग रहा है. ’गंभीर’ जैसे शब्द का प्रयोग मात्र तुक के लिए हुआ प्रतीत हो रहा है. ’माँ धीरज-कारुण्य की सदा दिखी तस्वीर’ जैसी पंक्ति किसी तौर पर समीचीन होती. या ऐसी कोई पंक्ति सोचिये.
माँ प्रतिनिधि है ईश की, देवी इसको मान,
पहली सीढी ज्ञान की, उसको दो सम्मान |
यह दोहा ठीक बन पड़ा है.
पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से होता है हमें, रिश्तों का भी बोध |
इस दोहे के दोनों पदों में कोई सम्बन्ध नहीं बन रहा है.
सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,
माँ में भरी मिठास ही, देती सुखद बयार |
कोई मीठी प्रकृति की चीज़ स्वाद में सुखद लगेगी या सुखद बयार देगी, आदरणीय ?
इन्हीं कारणों से दोहों पर और समय देने की इच्छा साझा की थी मैंने.
वस्तुतः, आपकी वरीष्ठता और इस मंच पर के आपके अबतक के अनुभव से हम सभी अब लाभान्वित होना चाहते हैं, आदरणीय.
सादर
"अन्य दोहों को कुछ और समय देना श्रेयस्कर होता" इसीलिए तो आपकी प्रतिक्रिया की प्यास बनी रहती है | वर्ना तो सराहते तो सभी है |
शेष दोहों को परिमार्जित करने का प्रयास करूंगा आदरणीय | आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ जी |
सादर
सृष्टि बसे क्या माँ बिना, जग की वह आधार,
माँ के आँचल में बसा, दुनिया भर का प्यार |
बहुत खूब !
अन्य दोहों को कुछ और समय देना श्रेयस्कर होता. बधाइयाँ और शुभकामनाएँ स्वीकारें, आदरणीय.
मातृ दिवस पर रचेदोहें पसंद करने के लिए आपका अतिशय आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी | सादर
मातृ दिवस पर रचे दोहों पर सार्थक प्रतिक्रिया कर स्नेह दर्शानें के लिए आपका हार्दिक आभार आद श्री गिरिराज भंडारी जी | सादर
दोहें सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री (डॉ) विजय शंकर जी | सादर
नमस्ते श्री समर कबीर जी, दोहें पसंद करने के लिए शुक्रिया
सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई।
आदारणीय लक्ष्मण लड़ीवाला भाई जी , पाँचो दोहे मातृत्व के गुणो को बखूबी बयान कर रहे हैं , दोहावली के लिये आपकओ हार्दिक बधाइयाँ ॥
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