For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं  

जग की वह आधार (दोहें)

माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर 
माँ का जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |- 1

माँ ही ईश की प्रतिनिधि,  देवी  सा सम्मान

ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते है गुणगान |-2

उठते ही नित भोर में, माँ को करें प्रणाम,

माँ के चरणों में बसे, चारों तीरथ धाम | - 3

पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से ही होता उसे, सब रिश्तों का बोध | - 4

सरका कर तन से वसन, पीता दूध अबोध,

आंचल से शिशु दूध पी, करें सुधा सा बोध |- 5

शिशु को आँचल में ढकें, ह्रदय प्यार अनमोल,

प्यास बुझाती स्नेह कर, लेती चूम कपोल | - 6

सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,

माँ का पौष्टिक दूध ही, जीवन का आधार |- 7

माँ ही माता शारदा, सद्गुण की वह खान,

भरे नेह की छाँव में, मुख से बरसे ज्ञान | -8

माँ स्वरूप को जानना, सचमुच टेडी खीर,

धीरज धरती माँ सदा, कभी बहुत गंभीर | -9

सृष्टि बसे क्या माँ बिना, जग की वह आधार,
माँ के आँचल में बसा, दुनिया भर का प्यार | -10

 

(मौलिक अ अप्रकाशित)

 

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 19, 2015 at 11:21am

सही कह रहे है  आदरणीय, भारत की सम्रद्धि और विकसित  ज्ञान कौशल जिसके कारण यह देश जगत गुरु रहा  और ज्ञान पिपासु यहाँ आया करते थे, कालान्तर में स्वार्थवश "सिखाने" की कम होती गई प्रवर्ती के कारण ही विधाएं लुप्ती होती गई | खैर ये लंबा विषय है | - कुछ प्रयास विचारार्थ प्रस्तुत है आदरणीय -

माँ की ममता कोख की सहती रहती पीर
माँ के जैसा कौन है इस जग में गंभीर ....   माँ के जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर | 

पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध, - पलकर माँ की गोद में, खिलता कुसुम वसंत,
माँ से होता है हमें, रिश्तों का भी बोध |     - माँ ममता की छाँव में,, मिलता सकूँ अनन्त | 

सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार, - सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,
माँ में भरी मिठास ही, देती सुखद बयार |       माँ के तन का दूध ही, जीवन का आधार | 

जो कुछ सीख मुझे मिलती आई है उसका कुछ अंश भी मैं दे सकूं, तो अपने आपको सौभाग्यशाली ही समझूंगा आद सौरभ जी |

सादर 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 10:31pm

//इसीलिए तो आपकी प्रतिक्रिया की प्यास बनी रहती है | वर्ना तो सराहते तो सभी है //

आपकी सदाशयता और मुझ पर इस भरोसे के लिए हृदय से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी. रचनाओं को बस सराहना और रचनाकारों के गुड-बुक में आना, रचनाकारो की नज़रों में अच्छा बनना.. किसे अच्छा नहीं लगता. किन्तु जानते-बूझते किसी को उसकी कमियों के प्रति अगाह न करना मेरी दृष्टि में घृणित चौर्यकर्म है.

जितना जानता हूँ उतने भर का प्रयास करता हूँ. इसी क्रम में मेरा कितना सीखना हो जाता है, यह मुझसे पूछिये.
दूसरे, यही तो इस मंच का उद्येश्य है -- सीखना-सिखाना.  यह अलग बात है कि कुछ लोग इस द्वंद्व शब्द से मात्र पहले भाग पर ध्यान रखते हैं. यथोचित ’सीख’ जाते ही उनका स्वार्थ उनपर हावी हो जाता है. या, मेरे जैसों के ऐसे प्रयासों को ’दिखावा’ या ’शेखी बघारना’ समझते और समझवाते हैं.

खैर, हम जैसों को इसकी कोई परवाह नहीं है. यदि नहीं परवाह है तभी तो यह मंच आज भी सोत्साह अनवरत है !

आइये हम कुछ साझा करें --

माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर
माँ का जैसा कौन है,इस जग में गंभीर |

माँ की ममता कोख की सहती रहती पीर
माँ के जैसा कौन है इस जग में गंभीर ....  
लेकिन पहले पद में ’पीर’ को सहने के क्रम में दूसरा पद मात्र खाना-पूर्ति लग रहा है. ’गंभीर’ जैसे शब्द का प्रयोग मात्र तुक के लिए हुआ प्रतीत हो रहा है. ’माँ धीरज-कारुण्य की सदा दिखी तस्वीर’ जैसी पंक्ति किसी तौर पर समीचीन होती. या ऐसी कोई पंक्ति सोचिये.

माँ प्रतिनिधि है ईश की, देवी इसको मान,
पहली सीढी ज्ञान की, उसको दो सम्मान |
यह दोहा ठीक बन पड़ा है.
 

पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से होता है हमें, रिश्तों का भी बोध |
इस दोहे के दोनों पदों में कोई सम्बन्ध नहीं बन रहा है.  


सरिता सा बहता रहे, माँ का निश्छल प्यार,
माँ में भरी मिठास ही, देती सुखद बयार |
कोई मीठी प्रकृति की चीज़ स्वाद में सुखद लगेगी या सुखद बयार देगी, आदरणीय ?

इन्हीं कारणों से दोहों पर और समय देने की इच्छा साझा की थी मैंने.

वस्तुतः, आपकी वरीष्ठता और इस मंच पर के आपके अबतक के अनुभव से हम सभी अब लाभान्वित होना चाहते हैं, आदरणीय.
सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 18, 2015 at 7:40pm

"अन्य दोहों को कुछ और समय देना श्रेयस्कर होता" इसीलिए तो आपकी प्रतिक्रिया की प्यास बनी रहती है | वर्ना तो सराहते तो सभी है |

शेष दोहों को परिमार्जित करने का प्रयास  करूंगा  आदरणीय | आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ जी |

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 3:41pm

सृष्टि बसे क्या माँ बिना, जग की वह आधार,
माँ के आँचल में बसा, दुनिया भर का प्यार |
बहुत खूब !

अन्य दोहों को कुछ और समय देना श्रेयस्कर होता.  बधाइयाँ और शुभकामनाएँ स्वीकारें, आदरणीय.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2015 at 10:54am

मातृ दिवस पर रचेदोहें पसंद करने के लिए आपका अतिशय आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2015 at 10:26am

मातृ दिवस पर रचे दोहों पर सार्थक प्रतिक्रिया कर स्नेह दर्शानें के लिए आपका हार्दिक आभार आद  श्री गिरिराज भंडारी जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2015 at 10:23am

दोहें सराहने  के लिए हार्दिक  आभार  आपका श्री (डॉ) विजय शंकर जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2015 at 10:22am

नमस्ते श्री समर कबीर जी, दोहें पसंद करने के लिए शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:50pm

 सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 9:31am

आदारणीय लक्ष्मण लड़ीवाला भाई जी , पाँचो दोहे मातृत्व के गुणो को बखूबी बयान कर रहे हैं , दोहावली के लिये आपकओ हार्दिक बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service