For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घाट पर ठहराव कहाँ (लघुकथा)

धरा में कम्पन होते हुए एक सैलाब सा उमड़ पड़ा। सामने से आती उत्ताल नदी का वेग फट पड़ा था जमीन पर .....
धरा का हृदय विभक्त हो उठा दो किनारों में । धरा का खुद के अंश से अलगाव सहना ...!!
धरा का रूदन अब कौन सुने ..?
उन्मुक्त नदी अपनी ताव में जमीन की छाती चीरती हुई बढ़ चली थी ।
उसे क्या परवाह थी कि किसने चोट खाई .... !
बेबस थे दोनों किनारे ....बरसों,जो रहे थे एक दुसरे में समाहित ... वो आज .... !!
अब जीवन भर देखते ही रहना है एक दुसरे को.....यूँ ही ।
किनारे नदी की मार से घिस-घिस कर हनन होते रहे .... पीड़ा सहते रहे ।
घाट पर ठहर जाने के लिए तरसती रही .......पर हाय री क़िस्मत ...!!!
समय का चक्र....... ठहराव कहाँ देता है ....?


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 726

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 11:09am
मै आप सबके समक्ष बडी अदना सी लेखिका हूँ ... गुढ़ ज्ञान से वंचित हूँ ..... कोई बडी डिग्री नही है साहित्य मे मेरे पास .... बस लिख देती हूँ जो दिल मे आता है .... कहती और समझती भी उतना ही हूँ जितना महसूस कर पाती हूँ ..... आप सबको रचनाएँ पसंद आई मेरे लिए यह उपहार से कम नही ..... अपनी कमियों को आप सब को पढकर गुनती रहती हूँ कुछ अक्षर बुनती रहती हूँ ..... सदा मार्गदर्शन मे आपके ...... आभार आपको आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
Comment by kanta roy on May 13, 2015 at 11:01am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी अलगाव सदा हृदय के लिए कष्टकारी ही साबित हुआ है चाहे वो बँटवारा देश का हो या राज्य का या हो यह बँटवारा घर का .... मानवीय संवेदनाएँ सदा से त्रस्त होती ही आई है । नमन आपको हौसला वर्धन के लिए
Comment by shree suneel on May 13, 2015 at 10:19am
आदरणीया कांता जी, इस भावपूर्ण, सुन्दर कविता के लिए बधाई आपको.
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 13, 2015 at 7:49am

भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई ...सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 6:23am
प्रकृति का मानवीकरण
बढ़िया प्रवाह शब्दों का
बहुत सुन्दर रचना
आपकी धारदार कलम से निकला शब्दों का जादू जो भाव स्तर पर भी दमदार है।
आदरणीया कान्ता जी बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:40pm

आदरनीया कांता जी , अलगाव के दर्द को खूब सूरत शब्द मिले हैं । रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by kanta roy on May 12, 2015 at 6:36pm
आदरणीय डाक्टर विजय शंकर जी , दर्द बिछोह का एक ही होता है ..... बँटवारा चाहे धरती का हो या घर का ....बिछोह बहुतों पर भारी पडता है । निजी स्वार्थ में डूब कर जन हित को दरकिनार करने वाला, उत्ताल नदी के समान ही दुखदायी हो जाता है । कथा पसंदगी हेतु नमन आपको । आपके मार्गदर्शन की सदा अभिलाषी ।
Comment by kanta roy on May 12, 2015 at 6:31pm
लिखते हुए लेखन का मन भाव समंदर हो चुका था इसलिए कथ्य होते हुए भी कही विलुप्त हो गया । मन भावों पर जितना लगाम था लगाए मैने ......कोशिश की नदी का उत्ताल वेग समंदर की प्रलयंकर वेग ना बन जाये ... जो लिखा आपके समक्ष पेश किया .... आपने रचना पर नजरे करम किये । आभार आपको हृदय तल से नमन आदरणीय डाक्टर आशुतोष मिश्रा जी
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2015 at 6:20pm
आदरणीय सुश्री कांता रॉय जी , देश के विभाजन का बहुत ही दर्द भरा चित्र प्रस्तुत किया है , पर शायद थोड़ा और मुखर होना अपेक्षित था।
बधाई इस मार्मिक प्रस्तुति पर , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 6:01pm

आदरणीया कांता जी  आदरणीय बिनोद जी ने बिलकुल सही कहा है ..लेकिन  रचना मुझे बहुत पसंद आयी ..नदी की तरह बहती हु ई रचना ..आपको सादर बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service