For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर कलंदर सी मस्ती में रहता है


22/22/22/22/22/2 (सभी कॉम्बिनेशन्स)
दिल के ओहदेदारों का अब क्या करिये.
बचपन के उन यारों का अब क्या करिये.
.
तुम कब तुम थे- मैं कब मैं, वो कहानी थी
उन मुर्दा क़िरदारों का अब क्या करिये. 

.
राजमहल था जिस्म, ये दिल था शाह कभी 
इन वीरां दरबारों का अब क्या करिये.  
.

मान गए वो आख़िर में जब बात अपनी
पहले के इन्कारों का अब क्या करिये.
.
उसके क़दमों पे धर आए सर ही जब
फिर महँगी दस्तारों का अब क्या करिये.   

हम ही ने सर पर अपने बैठाया है
जमहूरी सरकारों का अब क्या करिये.
.
झूठ को सच औ सच को झूठ बनाते हैं  
डरे बिके अखबारों का अब क्या करिये.
.
सदियों से इंसानी जान की दुश्मन हैं
प्राचीरों मीनारों का अब क्या करिये.
.
अबकी बारिश में घर जाने क्या होगा
उन बूढी दीवारों का अब क्या करिये.
.
अपनों ही ने छोड़ दिया है जब हमको
गलियों का चौबारों का अब क्या करिये.
.
‘नूर’ कलंदर सी मस्ती में रहता है
उस जैसे खुद्दारों का अब क्या करिये.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 18, 2015 at 9:22pm

जी ..
मैं पुनरावलोकन करता हूँ 
सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 9:05pm

//वो लघु पढिये //
अवश्य पढ़ा हूँ, आदरणीय. उस मिसरे में ’वो’ को गिरा कर ही पढ़ा जायेगा. तभी ’कहानी’ के ’क’ से युक्त हो कर दो लघु बन पायेंगे. लेकिन फिर भी मुझे प्रवाह में बाधा महसूस हुई. अतः आपसे निवेदन किया.
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 18, 2015 at 7:03pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर ..वो लघु पढिये 
व कहानी थी 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 18, 2015 at 7:03pm

शुक्रिया आ. वीनस जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 6:32pm

वाह आदरणीय नीलेशजी.. वाह ! ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिये.

तुम कब तुम थे- मैं कब मैं, वो कहानी थी  .. इस मिसरे की गेयता को लेकर मैं संतुष्ट नहीं हो पाया. कथ्य अपनी जगह गेयता या वाचन-प्रवाह इस बहर केलिए अत्यंतावश्यक है.

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:22am

जिंदाबाद भाई जिंदाबाद

एक एक शेर पर भरपूर दाद हाज़िर है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:07am

शुक्रिया श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:07am

शुक्रिया निर्मल भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:07am

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 14, 2015 at 8:06am

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service