इनकार कितना भी कर लें
दिल पर हाथ रख कर पूरी इमानदरी से सोचेंगे तो आप भी कहेंगे
हम भावनाओं की दुनिया में जीते हैं
और ये सच हो भी क्यों न , एकाध अपवाद छोड़कर
हम सब दो पवित्र भावनाओं के मिलन का ही तो परिणाम हैं
भावनायें गणितीय नहीं होतीं
कारण और परिणाम दोनों का गणितीय आकलन नामुमकिन है
हम सब ये जानते हैं , फिर भी
दूसरों के मामले में हम सदा गणितीय हल चाहते हैं ,
अक्सर रोते बैठते हैं , दो और दो चार न पा के
उत्तर कुछ भी निकल आता है , पाँच , सात या और कुछ
और सच तो ये है कि ,
यही हम सभी का सच है
लेकिन हमें दो और दो पाँच स्वीकार है
अगर जोड़ हमारी भावनायें करें तो
विरोध , आश्चर्य और दुख दूसरों के उत्तर पाँच आने पर है
इसी बदनीयती का ही तो परिणाम है ,कि
स्वीकार की जा रहीं है
सार्वभौमिक सच की तरह
और बिना जाँचे परखे हाथ उठ रहें है स्वीकार में
अगर बात अपने के मुँह से निकली हो
आज बात किसने कही महत्वपूर्ण हो गई है ,
बातें क्या कही जा रहीं हैं गौण
छटपटा रहीं है छोटे मुँह से निकली बड़ी महत्वपूर्ण बातें
स्वीकृति के लिये
और किसी नामवर नें मुँह फाड़ा नहीं कि, बात सर पे उठा ली जाती हैं
उदाहरण बनाये जा रहे हैं
आज की अपनी ग़लती को सच साबित करने के लिये
अपनों से जुड़ाव कैसा भी हो
भावनात्मक , राजनीतिक , व्यापारिक या और कुछ
उनकी कही बातें आपके लिये सही भी है ,
और पत्थर की लकीर की तरह अमिट भी
फिर चाहे वो कितनी भी घातक क्यों न हों , परिणाम से
मुझे तो दुख है , अफफोस है ,
होना तो आपको भी चाहिये ,
पर क्या पता ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आज बात किसने कही महत्वपूर्ण हो गई है ,
बातें क्या कही जा रहीं हैं गौण
छटपटा रहीं है छोटे मुँह से निकली बड़ी महत्वपूर्ण बातें
स्वीकृति के लिये
और किसी नामवर नें मुँह फाड़ा नहीं कि, बात सर पे उठा ली जाती हैं
उदाहरण बनाये जा रहे हैं....आदरणीय गिरिराज भाईसाब इस चितन से ओत प्रोत शसक्त रचना के लिए आपको तहे दिल बधाई सादर
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