“हैलो माँ ! कैसी हो ? खाना खा लिया ? भाभी का क्या हाल है?” माला ने फ़ोन पर अपनी माँ से सवालों की झड़ी लगा दी.
“कहाँ खाया है बेटा? एक तू है जो रोज़ फ़ोन करके आधा-एक घंटा बात कर मन हल्का कर देती है. वर्ना तेरी भाभी को तो हमसे कोई मतलब ही नहीं. बस लगी रहती है अपने कमरे में.. फ़ोन पर.. जब खाना बन जायेगा तो खा ही लूँगी..”, माँ का शिकायत भरे लहजे में जबाब आया.
“ऐसे थोडे ही चलेगा, माँ !“
तभी अन्दर के कमरे से माला की सास की आवाज आयी, “ बहूऽऽ, दोपहर होने को आयी, सुबह का नाश्ता भी मिलेगा क्या..? या फ़ोन से ही चिपके रहना है ?”
“तो क्या अब अपने परिवार वालों से भी बातें न करूँ ?.. एक वही लोग तो हैं, जिनसे बातें कर मन हल्का कर लेती हूँ..”, माला का तमतमाता हुआ ज़वाब आया.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
कुछ भी हो, आजकी पीढ़ी यदि असंवेदनशील हो गयी है, या अपने कर्तव्यों के प्रति निरुत्तरदायी दिखती है तो इसके पीछे वे माँ-बाप हैं जो आजतक अपने दायित्व के प्रति गंभीर नहीं हो पाये हैं. एक गहन तथ्य को बहुत ही गंभीरता से उभारने केलिए धन्यवाद., भाई शुभ्रांशु
कोई रचना हो, वह इसी समाज की उपज हुआ करती है. हर लिखने वाला अपने दौर की ही पैदाइश होता है. तभी तो वह किसी रचना की सार्थकता के लिए प्रासंगिक तान-बाना बुन पाता है. इसी कारण देखा जाता है कि रचना का ट्रीटमेण्ट कैसा है !
इस कथा को जैसा ट्रीटमेण्ट मिला वही इसकी ताक़त है.
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
आदरणीय गणेश भैया,
कथा पर आने और विचार रखने के लिये आभार.
सादर.
माँ-सास और बेटी-बहूँ का अंतर यदि मिट जाय तो कई बातों का स्वतः समाधान हो जाएगा, अच्छी लघुकथा हुई है बहुत बहुत बधाई शुभ्रांशु भाई.
आदरणीय विजय जी,
आप जैसे गुनी जन से प्रशंसा पा कर बहुत प्रोत्साहन मिलता है.
सादर.
आदरणीया प्राची जी,
कथा पर आने के लिये आभार.
//अब रोज़ बेटी और माँ फोन पर गपियायेंगे तो AMCK (आओ मिलकर चुगली करें) ही तो होगा :)))))))))))))))))// ये AMCK तो एक दम से नया जुमला है. हा हा हा हा.
कथा को मान देने लिये धन्यवाद.
सादर.
आदरणीय गोपाल नारायण जी,
कथा पर आने के लिये आभार.
सादर.
अति सशक्त लघु कथा। बधाई।
आज की पीड़ी यदि ज़िम्मेदारी को नहीं समझती, तो ज़िम्मेवारियों को समझाने वाले सोर्स भी तो क्या समझाते हैं/.....ये सामाजिक अवमूल्यन के कारणों पर एक बड़ा सवाल है
अब रोज़ बेटी और माँ फोन पर गपियायेंगे तो AMCK (आओ मिलकर चुगली करें) ही तो होगा :)))))))))))))))))
एक वृहद सामाजिक समस्या पर आपने सुन्दर लघुकथा प्रस्तुत की है... बधाई आ० शुभ्रांशु भाई जी
आदरणीया तनुजा जी,
कथा पर आने और विचार देने के लिये घन्यवाद.
सादर.
आदरणीय विनय जी,
सही कहा आपने, ...बुरा जो देखन मैं चला....
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
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