" हेलो , पापा , आप समय से अपनी दवा खा लेना "| बेटी के शब्द सुनकर उन्होंने सुकून की सांस ली | अभी कल ही उसने फोन नहीं किया तो एकदम परेशान हो गए और वापस आते ही पूरा लेक्चर दे डाला |
आज भी हड़बड़ी में वो भूल ही गयी थी पर एक बुज़ुर्ग को सामने देखते ही याद आ गया | पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , धन्यवाद..
बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , धन्यवाद इतने सुन्दर कमेंट के लिए..
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी , आपके कमेंट्स बहुत हिम्मत बढ़ाते हैं..
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी , आपके अच्छे कमेंट्स हमेशा हौसला बढ़ाते हैं
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण शर्मा जी..
बेहतरीन लघुकथा
बधाई इस प्रस्तुति पर
"पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है | "
आ. विनय सर ये पंक्तियाँ सब कुछ कह डालतीं हैं एक पल में , इस सुन्दर रचना पर बधाई ! सादर
बहुत सुन्दर रचना ... आदरणीय विनय कुमार जी..
सच है अपनों के लिए चिंता और आपसी मोह के बंधन आपस में एक दुसरे के पर्याय है . सादर बधाई स्वीकार करे.
बहुत खूब, आदरणीय विनय जी. बड़ी सुंदर लघुकथा, सच! अपनों के सुरक्षित लौट आने की खबर ही बड़ी ठंडक सी दे जाती है मन को.
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ |
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