चटक धूप. आसमान में उड़ते-उड़ते गला सूख गया था. पानी की एक बूँद कहीं नजर नहीं आ रही थी. पानी या तो बोतलों में बन्द था या वहाँ स्वीमिंग पूल में था , लेकिन स्वीमिंग पूल के ऊपर लगी जाली के कारण पाना सम्भव नहीं था.
इस प्रचंड गर्मी में सजे-धजे साफ़-सूथरे शहर में प्यास से व्याकुल चिडियों को खसर-खसर करते वो चापाकल, उनके किनारे की खुली नालियाँ, लगातार टपकती म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की टोटियों की बहुत याद आ रहीं थी.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
इस लघुकथा के माध्यम से आजके विकास का अत्यंत ही असंवेदनशील चेहरा सामने आया है. समस्या को समुचित संवेदना के साथ उठाती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
आदरणीय गणेश भैया,
कथा पर आने के लिये आभार.
सादर.
विकास के इस दौड़ में कई चीजे भूलती जा रहीं हैं, एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान आकृष्ट कराती हुई अच्छी कथा हुई है, बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय डा आशुतोष जी,
घर की छत पर रखा एक प्याला जल इस नकारात्मक विचार का समाधान है. अगर हर घर के छत पर ये प्याला भरा हो तो आपके यहां नहीं लेकिन कहीं तो ये प्यासे जल पीयेंगे ही. कथा पर आने के लिए आभार.
सादर.
आदरणीय श्री सुनील जी,
शहर का मतलब ही व्यवसाय का केन्द हैं. यहां कई बातों के लिये प्रयास किये जाते हैं. स्वाभाविक रुप से मिलने वाली चीज को भी दुरुह बना दिया जाता है.
सादर.
आदरणीय विनय जी,
उन टपकटी टोटियों के सहारे चिडियां ही नहीं कई जानवर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे.
सादर.
आदरणीय गोपाल नारायण जी,
प्लास्टिक के बन्द ढक्कनों ने मानवता के ढक्कन को भी बन्द कर दिया है. अब होटल वाले पानी देने के बदले बोतल बेचने का प्रयास ज्यादा करते हैं.
सादर.
आदरणीय श्याम नारायण जी,
कथा पर आने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु जी ..चिड़िया क्या हर जीव याद कर रहा है वो मंजर ..सच में बिनाश का ही समय आ गया है ..सोचने के लिए प्रेरित करती इस शानदार लघु कथा के लिए तहे दिल बधाई सादर
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