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गीतिका छंद......गीतिका छ्न्द में 14-12 के क्रम में कुल 26 मात्राएं होती हैं.  इस छंद की प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं व चौबिसवी मात्राएं अनिवार्य रूप से लघु ही होती हैंं.

मां सरस्वती - वन्दना

शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध मन से रिक्त हो।।1

वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी की भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है कामना।।
आचरण में धर्म-सत्यम, कर्म से सदभावना।
जीव के प्रति त्याग हो जड़ से मिटे हर वासना।।2

शब्द में लयबद्ध सरगम तार सप्तक रागिनी।
विश्व में इक राग हो झंकार वीणा वादिनी।।
रंग संशय जाति का हर देश में प्रतिकार हो।
सत्य से परिचय करा मां इक लहू का सार हो।।3

द्वेष-ईर्षा, काम-मत्सर हर हृदय से दूर हो।
बीज जैसा दृढ़ सृजन वट-वृक्ष सा भरपूर हो।।
दीन को अतिहीन को घर-वस्त्र-भोजन, मान दो।
बुद्धि-मन से क्षुब्ध जन को शान्ति-सुख, रस-तान दो।।4

के0पी0 सत्यम /मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 8:49pm

आ0 गोपाल भाईजी, प्रणाम! आपके अनुमोदन, महत्वपूर्ण व मानने योग्य सुंदर सुझाव के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 8:46pm

आ0 लडीवाला भाईजी, प्रणाम! आपके अनुमोदन एवम उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर,

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 24, 2015 at 11:17am

सत्यम जी  बहुत बधाई

सुन्दर वंदना सुनायी

दो वर्तनी सुधार आवश्यक है ---============ निश  को निशि  कर लें और ईर्षा को ईर्ष्या . सादर .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 24, 2015 at 9:39am

माँ  शारदा पर सुंदर छंद  रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री केवल प्रसाद जी 

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