For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूकम्प....

यादों के शहर में
मुॅह बिचकाती सड़कें
दरक कर उलाहना देतीं ....दीवारें खिसियाती
जमीं पर भटकते अबोध सितारे

औंधें मुॅह धूल चाटतीं ऐतिहासिक धरोहरें
झुके वृक्ष कुछ और झुक कर पूछना चाहते....कैसे हो?
भूकम्प के झटकों से टेढ़ा हुआ चॉद
चॉदनी धू-धूसरित....
मलबे के नीचे दबे विदीर्ण स्वर अतिशांत
प्रकृति भी सहम उठती।
अडिग अट्टालिकाएं चकनाचूर
बिछड़े आँखों के नूर
भाग्य स्वयं को कोसते.....तो, संवेदनाएं मूक।
मैदानों में लहराते दु:ख के सागर
सिसकतीं सींप,  तड़फतीं मछलियां
छायाएं अपनी ही परछाईयों से डर कर सिमटी
दर्पण स्वयं के अक्स को खोजता
मिलता, पॉच मीटर पन्नी, एक लीटर पानी, कुछ बि-िस्कट और
एक फटकार.....दूसरे भी है?
नवीन भवनों के चिकने गालों पर भी
डर की झुर्रियां साफ झलकतीं
बदहवास इंसान स्वयं पर खीजता
बचाव दल...अवशेषों को उलटते-पलटते
सावधानी पूर्वक प्राण फूंकते
बचा लेते कई चोटिल, पंगु, बेहोश जानें और-
कुछ को पन्नियों से ढक देते,

असहज होकर..
सिर लटकतें ही आकाश रो पड़ता
भीगता धरती का आँचल
अपरिचितों के साथ बहती अपनों की मिट्टी
थम जाती सांसें।
गंधीले भाव समय की मुट्ठी से फिसल कर
बिखेरते जाफरानी खुशबू
तार-तार झंकृत करते ढाई आखर प्रेम 
बर्फ की कठोरता नित्य सॅवारते.....एक नया भविष्य!
प्रकृति अनुसरण से मुक्त
नियति प्रतिवाद नहीं......जीवन का बोध कराती
अनुसरण,

इन्सानों का धर्म है।

के0पी0 सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 23, 2015 at 8:53pm

आ0  श्याम नारायण भाई जी, प्रणाम!   कविता को पसंद करने व उत्साह बढाने हेतु आपका हार्दिक आभार, सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 23, 2015 at 8:52pm

आ0  सुनील भाई जी, प्रणाम!   कविता को पसंद करने व उत्साह बढाने हेतु आपका हार्दिक आभार, सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 23, 2015 at 8:48pm

आ0 गोपाल भाई जी, प्रणाम!   कविता पर आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार, सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 23, 2015 at 8:43pm
आ0 समर भाई जी, वलेकुमअस्सलाम! कविता के समर्थन में आपकी टिप्पणी मेरे लिये बहुत मायने रखती. आपका हार्दिक आभार, सादर
Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2015 at 11:37am

बहुत  ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई 

सादर 

Comment by shree suneel on May 21, 2015 at 3:16pm
सटीक चित्रण आदरणीय केवल प्रसाद जी. बधाई आपको.
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2015 at 11:18am

बहुत बढ़िया . क्या बात है . बधाई सत्यम जी .

Comment by Samar kabeer on May 21, 2015 at 10:34am
जनाब केवल प्रसाद जी ,आदाब,इस दर्द भरी और दिल को छू लेने वाली कविता के लिये बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service