For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विकासवाद का चरित्र

सड़क, गली, कूचों व मैदानों में
उन्मादी संक्रमण मस्ती करते
विकल, प्राण पखेरू
समूहों में फड़फडाते- गिड़गिडाते
गगन, हवा, दीवारों में सिर मार कर डूब जाते
सागर, सरोवर, ताल, नदी, झीलों में
बजबजाता विकासवाद
अशिष्ट पन्नियों से ।
दलदल में कमलदल, दलगत उन्मुक्त पर
स्थिर, मूक, भावहीन संज्ञाएं
क्रियाशील भौंरे सब हवा हो गए
गुम गयीं - तितलियॉं
सौन्दर्य निगलती- वादियॉं
दिशाएं- दिशाहाीन, पूर्णत: शुष्क पछुवा पर निर्भर
मुट्ठियों में बन्द भाग्य- हतोत्साहित
मील के पत्थर लहूलुहान करते
घरती कॉंप जाती
उछलते कूदते मासूम बच्चे
तितलियों से इतर पकड़ते उड़ती पन्नियॉं
सहेज लेते बड़े प्यार से
अशिष्ट बोरों में
साफ झलकता
विकासवाद का चरित्र।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2015 at 7:22pm

आ0 सौरभ सरजी,    सादर प्रणाम!  कविता पर आपकी विस्तृत भावाभिव्यंजना पूर्ण टिप्पणी, कवि और पाठक के बीच राम-सेतु का कार्य कर रही है. आपकी कलात्मक लेखनी ने नल-नील की भांति ही कठोर पत्थरों को भी सहजता से जल में तिरा दिया. इस कविता पर आपके श्रम के  लिये मैं शत-शत बार नतमस्तक हूं.  मैं आपका अतिकृतज्ञता से आभार प्रकट करता हूं. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 8:58pm

सड़क, गली, कूचों व मैदानों में
उन्मादी संक्रमण मस्ती करते
विकल, प्राण पखेरू
समूहों में फड़फडाते- गिड़गिडाते
गगन, हवा, दीवारों में सिर मार कर डूब जाते..  ..................क्या ही दृश्य खींच दिया है, आपने, भाई केवल प्रसादजी ! वाह वाह !

सागर, सरोवर, ताल, नदी, झीलों में
बजबजाता विकासवाद
अशिष्ट पन्नियों से .. ..  ........................................सुन्दर बिम्ब ! बहुत खूब !

दलदल में कमलदल, दलगत उन्मुक्त पर
स्थिर, मूक, भावहीन संज्ञाएं
क्रियाशील भौंरे सब हवा हो गए
गुम गयीं - तितलियॉं .. ... ............  कमाल ! इस बिम्बात्मक शाब्दिकता पर बार-बार बधाई !

सौन्दर्य निगलती- वादियॉं
दिशाएं- दिशाहाीन, पूर्णत: शुष्क पछुवा पर निर्भर  ... . ... इन पंक्तियों के साथ आप अपने अबतक के सर्वाधिक परिष्कृत रूप में सामने आये हैं, भाईजी ! कहन की अभिव्यंजना का ज़वाब नहीं है. ’शुष्क पछुआ’ का इतना सटीक प्रयोग ! कविता बहुत बड़ी हो कर उभरी है.
 
उछलते कूदते मासूम बच्चे
तितलियों से इतर पकड़ते उड़ती पन्नियॉं
सहेज लेते बड़े प्यार से
अशिष्ट बोरों में
साफ झलकता
विकासवाद का चरित्र ! ................... भाईजी , मैं दंग हूँ !

आपकी इस कविता को आपकी अबतक की पढ़ी सबसे सशक्त कविता के रूप में याद रखूँगा. क्लिष्ट भावदशा को सहजता से संप्रेषित करती इस कविता केलिए हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2015 at 8:53pm

आ0  विजय सर जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2015 at 8:51pm

आ0 जितेंद्र भाई जी,  उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2015 at 8:49pm

आ0 प्राची जी,  प्रणाम!  जी. आपने बिलकूल सही कहा ---विकास के ढोल केवल सडकों के पोलों  पर ही चींखते हैं. ----------वास्तव में राहुल गांधी गावों के गरीब ग्रामीणों के घरों में कितना झुक कर आते-जाते हैं.......इससे ग्रामीणों / किसानों का कद साफ झलकता है. आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by vijay nikore on May 20, 2015 at 4:16am

अति सुन्दर। हार्दिक बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 20, 2015 at 12:18am

बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ,आदरणीय केवल जी. सच! विकासशील भारत का यही विकास है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 19, 2015 at 9:45pm

तितली के पीछे भागने वाले उन्मुक्त बचपन को जब दोरंगे विकासवाद के श्यामल स्वरुप में देखें तो पन्नी बटोर कंधे पर टंगे कुचैले थैलों में भरता देखना चीख चीख कर विकासवाद के खोखले व दोगलेपन की गवाही देता है...

सुन्दर प्रस्तुति हुई है आ० केवल प्रसाद जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2015 at 8:29pm

आ0  वामनकर भाई  जी,  प्रणाम.  रचना पर अनुमोदन एवम उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2015 at 8:25pm

आ0  गोपाल भाई  जी,  प्रणाम.  आपको रचना पसंद आई, आपका हार्दिक आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service