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किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की *पेट
जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
न जाने नींद कैसे आती है ऐ बेरहम तुझको
तेरे कारे सितम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले
कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
पलट के देख लो मायूस चेहरों की तरफ़ इक बार
किस उम्मीदे करम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
-मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय सौरभ सर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचनाकर्म सार्थक हुआ आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय श्री सुनील जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेश जी नवाजिशों के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया आप स्वयं बहुत अच्छे ग़ज़लकार हैं आपकी सराहना हमेशा हर्षित करता है
आदरणीया शिखा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय केवल प्रसादजी आपका दिल से आभार
कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले
कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
ऐसी रदीफ़ को कैसा निभाया है ..
वाह वा
दिल से दाद क़ुबूल करें
जिंदाबाद ग़ज़ल है
एक एक शेर कीमती है
किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
भाई शिज्जू जी, मैं तो इस मतले पर ही निसार हो गया. बार-बार बधाइयाँ, बार-बार वाह-वाह आप भी अवश्य सुनियेगा..
जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
यह शेर भी बहुत बड़ा है. शानों पर एँड़ियाँ उचका कर ऊपर झांकने वाले जब ऊपर चढ़ जाते हैं, तो फिर उन लोगों से वास्ता नहीं रखते. इस सच्चाई को क्या सुन्दर मान मिला है !
इस व्यवस्थित ग़ज़ल केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, भाईजी.
आपकी ग़ज़लें कितनी गहनतर होती जा रही हैं, यह प्रस्तुति उसका भी पैमाना है.
शुभ-शुभ
आदरणीय शिज्जु भाई आपकी बेहतरीन ग़ज़लों का सिलसिला जारी है उन्ही में एक और ग़ज़ल सम्मिलित हो गई
इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है
सादर
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