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कोशिश ___इस्लाह के लिए __मनोज कुमार अहसास

1222 1222 1222 1222


हमे ये गम हमारी ही खताओं से मिला होगा
सहारे इस कबूलत के नज़र को हौसला होगा


खुदा हमको ही लौटा देता है फेकें हुए पत्थर
हक़ीक़त जानकर किससे भला शिकवा गिला होगा


दुआ ये करता हूँ दिल में न कोई अब कभी उतरे
ज़रा नज़दीकियों से फिर नया एक फासला होगा


तसव्वुर बोझ बन जाये ज़माने मे तो फिर क्या हो
फक़त इस्लाह के हाथों से तब अपना भला होगा


बता'अहसास'तेरी बज़्म से उठ जाता तो कैसे
कदम कुछ जम गए होंगे कलेजा भी जला होगा


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by वीनस केसरी on June 10, 2015 at 1:06am

सुंदर प्रयास हुआ है, वरिष्ठ रचनाकारों से इस्लाह भी मिल गयी है
बधाई

Comment by मनोज अहसास on June 9, 2015 at 5:15pm
बहुत इनायत डॉ मिश्रा जी
आपकी बात सही है
इस्लाह के लिए ही ये ग़ज़ल डाली गयी है
कई वरिष्ठ जनो का अभी इंतज़ार है
वो सभी अपनी राय देदेगे
तब शायद कुछ बन जाये
बाद में आपकी एवम् अन्य सभी के निर्देशानुसार इसे फाइनल टच दिया जायेगा
मेरी बात आपके होठों तक पहुची
शुक्रिया
सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 9, 2015 at 4:48pm

ज़रा नज़दीकियों से फिर नया एक फासला होगा....एक की जगह शायद इक करना ठीक होगा बहर के अनुरूप ..आपकी यह ग़ज़ल गुनगुनाने में बड़ा आनंद आया ..बेहतरीन ग़ज़ल ..मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें  सादर 

Comment by मनोज अहसास on June 9, 2015 at 11:41am
shukriya adarniy shree sunil ji
Comment by shree suneel on June 9, 2015 at 9:38am
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय मनोज भाई. बधाइयाँ आपको इन अशआर के लिए.
Comment by मनोज अहसास on June 9, 2015 at 8:48am
आदरणीय गिरिराज सर
नमस्कार करता हूँ
आपका मार्गदर्शन मेरे लिए बेशकीमती है
मतला आपने सही कर दिया है शुक्रिया

गिला को परिवर्तित करने का प्रयास करता हूँ
बहुत आभार
Comment by मनोज अहसास on June 9, 2015 at 8:43am
शुक्रिया आ. त्रिपाठी सर
Comment by मनोज अहसास on June 9, 2015 at 8:42am
आदरणीय समर कबीर साहब शुक्रिया
आप हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते रहे है
आपकी इनायत बनी रहे तो कुछ सीख जाउगा
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 9, 2015 at 6:56am

हमे ये गम हमारी ही खताओं से मिला होगा
सहारे इस कबूलत के नज़र को हौसला होगा    -- बहुत खूब सूरत मतला है , पर काफिया मे सिनाद दोष है । उला मे -काफिया इला  लिया गया है , और सानी  में  अला   -- अगर आपको सही लगे तो  ऐसे उला को कह के देखिये  --- हमारी ही ख़ताओं से ये सारा गम फला होगा  , या जैसा आप चाहें । ऐसे ही गिला को भी काफिया  नही लिया जा सकता  , 

ग़ज़ल बहुत बढिया कही है , दिली मुबारक बाद स्वीकारें ॥

Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 12:08am
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,कमाल कर दिया आपने,क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है,सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

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