For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - फिल बदीह -- फिर किसी सलमान को ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122     212

***************************************

दें सहारा, लड़खड़ाते आ रहे नादान को

पूछ तो लें बोझ कितना है, भले इंसान को

 

तू समन्दर पास आँखें खोल के रखना नहीं

ठेस लग जाये न तेरे ज्ञान के अभिमान को  

 

ओ मेरे फुटपाथ पे सोये हुये मित्रों,  जगो !

क्यों बुलावा दे रहे हो फिर किसी सलमान को

 

कोशिशें तो खूब की आँसू गिरे, महफिल ने पर

हम ही बो आये वहाँ हर जा किसी मुस्कान को

 

क्यों हरा होता नहीं ये दिल , ख़िज़ाँ हो या बहार

मै कहाँ ले जाऊँ बोलो , इस दिल ए वीरान को

 

छोड़ के मज़हब सभी इंसानियत सिखला कभी 

मै   इशारा  कर  रहा हूँ  मुल्क़ के  दरबान को

 

आप कह के आप ही समझें, तो कहना क्यूँ ? तभी

आग दावत दे रही है उन सभी दीवान को

***********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 1:12pm

आदरणीया निधि जी , आपका हृदय से आभारी हूँ , गज़ल की तारीफ़ के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 1:11pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।

आपकी सलाह बहुत सही है , मै परिवर्तन ज़रूर करूँगा , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 1:09pm

आदरणीय केवल भाई , उसताह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Nidhi Agrawal on June 16, 2015 at 12:47pm

आदरणीय गिरिराज जी - एक अबाध बहते झरने की तरह दिल में उतर गयी ये ग़ज़ल. 

हर शेर नायाब है हर शेर का अलग सन्देश ..बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हुई है .. सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 16, 2015 at 12:34pm

आ० अनुज

आशु शायर के रूप में भी आपका जवाब नहीं . ठेस लग जाये न तेरे ज्ञान के अभिमान को इस पंक्ति को अगर ऐसे पढ़े -------ठेस लग जाये न तेरी थाह के अभिमान को

सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 16, 2015 at 10:22am

हर सुबह सविता दिखाई दे रहा है आप से,

रोज ही स्वर्णिम सफर में बांट जाते ज्ञान को.......बहुत ही प्यारि गजल हुइ है. दाद कुबूल करे. सादर...आ0 भंडारी भाई जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service