" मंजू के यहाँ आज बडी़ वाली एल ई डी भी आ गई । पिछले ही महिने उसने गाड़ी भी ली थी । और एक आप है ...!!!"
" मै क्या ....? क्या कहना चाहती हो तुम ?"
वहीं पास के विडियो गेम में लगे बेटे ने भी कंधे को उचका कर पिता की ओर देख फिर अपने गेम में व्यस्त हो गया ।
" मै क्या कहूँगी भला आपसे .! आपकी ही आॅफिस का बाबू है वो ..और आप अधिकारी होकर भी किसी काम के नहीं ..! "
" किसी काम का नहीं मै ....? "- मन में रह - रह कर एक ही बात अब घुम रही थी कि वे क्या किसी काम के नहीं है सच में ..? कल आॅफिस की लाॅबी में भी ठेकेदार के मुंह से परोक्ष में सुना था कि ये किसी काम के नहीं !
अगले ही दिन आॅफिस में ठेकेदार की अपूर्ण फाईल को पूर्ण करने के प्रयास में वे जी जान से लग गये थे ।
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आज की परिस्थित में ईमानदारी है ही कहाँ ,,जो व्यक्ति इसके नियमों पर चलते हैं आज का समाज उन्हें जीने नही देता,,,,और बेईमानी का तो बोलबाला है ,,,आपको हार्दिक बधाई आ. kanta roy जी |
दुनिया में कम ही लोग ऐसे होंगे जो अपनी मनमर्जी से २ नम्बरी कमी करना चाहते है पर उनकी अपने ही परिवार व् समाज में झूठी प्रतिष्ठा का प्रश्न ही उन्हें ऐसा करने पर विवश करता है! बहुत ही सार्थक विषय पर लघुकथा हुयी है!हार्दिक बधाई आदरणीया!
समसामयिक विषयो पर लेखनी तो चलती ही रहनी चाहिये. इस सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई. आ0 कांता जी, सादर
विषय बहुत सार्थक है, प्रस्तुति भी ठीक है। वाकई इस दल दल में घुस कर निकलना बहुत ही दुरूह कार्य है, वैसे भी लालच का कभी अंत नहीं हो सकता। एक ईमानदार व्यक्ति को भी अपनों के ताने बेईमान बनने के लिए मजबूर कर देते हैं। आज के परिपेक्ष्य में देखें तो विरले ही ईमानदार मिलेंगे।
बहती धारा में शामिल होना आसांन है .मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ की आज ईमानदारी को प्रोत्साहित करने वाला कोई नहीं है , न माँ, न बाप, न पत्नी और न बच्चे और समाज के कंटक तो आप है ही . मुझे याद है मेरे पिता मुझे मेरी प्रथम नियुक्ति पर पौड़ी गढ़वाल छोड़ने गए थे , मैं उन्नीस वर्ष का था. वहां से विदा होते समय उन्होंने कुछ बातें कही थी उनमें से एक यह बात थी कि मैंने कभी नं 2 की कमाई नहीं की पर यह मैं यहाँ तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ मगर बेटा यह याद रखना की इस व्यवहार में रिटेक नहीं होता अर्थात आज ले लेते है आगे फिर नहीं लेंगे .एक बार का फिसलना हमेशा के लिए फिसलना है I मैंने उनका बचन कितना निभाया यह मेरे साथ जिन्होंने काम किया है वे ही जानते हैं और इस सार्वजानिक मंच पर मुझे इसे बताने में इसीलिये कोई संकोच नहीं है i इस कहानी का कमजोर चरित्र मुझे प्रभावित नहीं करता परन्तु धारा के विपरीत कितने चल पाते हैं . सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online