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सांझ की सौतेली दुहिता....निशा,
अति हृष्ट-पुष्ट,
द्वेष में लिप्त अति उर्वरा
सघन तम में भी फलती है,
असंख्य नखत
अभावों में जीते, रह-रहकर चमकते
दम्भ में हठी
राहू-केतु-भद्रा सी उप-िस्थति
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को विचलित करते
चन्द्र अति शक्तिशाली किन्तु क्षीण
विपक्ष का नेता शशि शापित
उच्चताप में भी चन्दन
विषधारियों से आच्छादित
क्षण भर की लापरवाही से सौरभ छीन लेता
......बुद्धि-मन-प्राण भी,
तन.....बर्फ सा कठोर
चॉदनी उफ तक नहीं करती
रजनी, स्वछन्द विचरती
अनन्त आकाश से वियावान वन में,
जल में
अन्तर्मन के आंगन में खेलती.
सत्य, सजग सावधान,
समाधि में लीन
रजनीचर अति उत्तेजित,
यज्ञ विध्वंश करते
बचा न पाते अशोक वाटिका
हनुमान की पूंछ सी लिपी-पुती सड़क
धधक कर जल उठती
चॉदनी असहाय ...नित्य राख सी उड़कर
स्याह मन की तख्ती पर लिखना चाहती
आत्मा का दर्द
पूस की रात इन्तजार नहीं करती
गला देती है,
कठोर अस्थि भी,
आत्मा कराह उठती
दामिनी चित्र सी चिपक जाती
यत्र-तत्र, सर्वत्र....दीवारों से झांकती
तारे जमीन पर झिलमिलाते.....
समूहों में
खोजते स्वयं का भविष्य!
आक्रोशित इंडिया गेट ........किंकर्तव्यविमूढ!
सहसा स्वर गूंजा.....
अब न सहेंगे।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2015 at 9:37pm

आ0 सौरभ सरजी, आपका हार्दिक आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 2:01am

भाई केवल प्रसादजी, आपकी कविता से निस्सृत आक्रोश सदिह आक्रोश है इस क्रोध का समाज में व्यापना आवश्यक है. अतः स्वागत है.  
परन्तु कविता की भाषा आक्रोश और उसके तेवर को सँभाल नहीम् पाती. सहज शब्दों में वैचारिक प्रवाह को सस्वर करना था.
आपकी प्रस्तुति के भाव वस्तुतः सच्चे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें भाईजी.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 24, 2015 at 7:31pm
आपका हार्दिक आभार, जान भाई जी....मेरा तात्पर्य नारी का अस्थित्व, सुरक्षा,और स्वतंत्रता के सापेक्ष उसकी दुर्दशा से है. सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 21, 2015 at 9:34am

आ० केवल सर आपके विचार इतने सघन हो गये है की मै समझने में असमर्थ महसूस कर रहा हूँ! मेरी कमी है!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 19, 2015 at 6:16pm

आ0 महिर्शि भाई जी  प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 19, 2015 at 6:15pm

आ0 गोपाल भाई जी  प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 19, 2015 at 6:13pm

आ0 समर भाई जी  प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 19, 2015 at 6:12pm

आ0 कांता  जी  प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर

Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:28pm

चॉदनी असहाय ...नित्य राख सी उड़कर
स्याह मन की तख्ती पर लिखना चाहती
आत्मा का दर्द,,,,,बहुत बहुत बधाई आ. Kewal Prasad जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 18, 2015 at 6:39pm

बड़ा ही बौखलाया आक्रोश है जो आजकल आपकी कविता में देखने को मिल रहा है . आ० केवल जी  

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