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ले, कदमों पे सर है
लो, अब भी कसर है
जो मर ही चुके हो
तो अब किसका डर है
नहीं ख़त्म होगा
ये मेरा असर है
नहीं कोई मंज़िल
महज़ रह ग़ुज़र है
तो घर में ही बैठो
अगर तुमको डर है
लिखे शह्र जिसको
हमें वो शहर है
नहीं है जो कड़वा
वो मीठा ज़हर है
लो, अन्धों से सुन लो
कहाँ रह गुज़र है
****************
मौलिक एवँ अप्राशित
Comment
आदरणीय कृष्ना भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय वीनस भाई , सराहना के लिए आपका बहुत शुक्रिया । जी ठीक है , अभी मतला नहीं बदल रहा हूँ ।
आदरणीय विनय भाई , आपका बहुत बहुत आभार ।
नहीं ख़त्म होगा
ये मेरा असर है
बेहतरीन आदरणीय!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है
सर और कसर,,, पर कुछ कहना है अभी मतला मत बदलियेगा .....
// नहीं है जो कड़वा
वो मीठा ज़हर है // , वाह , बहुत उम्दा , बधाई आदरणीय.
आदरणीय पाठकों मतले मे काफिया बन्दी में गलती है , कृपया उसे सुधार कर यूँ पढ़ने की कृपा करें
मतला
यूँ , क़दमों मे सर है
कसर कुछ मगर है --- धन्यवाद ॥
आदरणीय श्री सुनील भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया , आपका ।
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