तैयार होकर रीता आॅफिस के लिए निकलने ही वाली थी कि नील कह उठे कि आज वो ही उसे आॅफिस छोड़ आयेंगे ।
उसे समझते देर ना लगी कि , आज फिर नील पर शक का दौरा पड़ चुका है ।
थे तो वे आधुनिक व्यक्तित्व के धनी ही । पत्नी का कामकाजी होना , उनकी उदारता का परिचय है समाज में । इसी कारण वे स्त्री विमर्श के प्रति बेहद उदार मान पूजे जाते है समाज में ।
"मै चली जाऊँगी , आप नाहक क्यों परेशान होते हो ! आपके आॅफिस का भी तो यही वक्त है । " - उसके आँखों में दुख से आँसू छलछला आये ।
"क्यों , तुम मुझे अपने आॅफिस के लोगों से दूर रखना चाहती हो ..? रात में विशाल का फोन आया था किसलिए ....? " -- नील ने सहसा चिल्लाकर कहा तो रीता की आँखों में चिंगारी भर उठी ।
"आपको शर्म आनी चाहिए , आप मुझ पर फिर शक कर रहे है ? आज की मीटिंग का टाईम चेंज हुआ था इसलिए फोन किया था बताने को । "
"चलिये , आॅफिस पहुँचा दिजिये मुझे । "-- बातों को तूल देने से अब बचना चाहती थी वो ।
" नहीं , तुम चाहती हो कि मै दूर रहू तुम्हारे पुरूष मित्रों से ...तो यही सही, रहने दो अब मै नहीं जाता तुम्हें पहुँचाने । "
" वो सहकर्मी है मेरे । "
रीता का अब दम घुटने लगा था । शक्की पति ... ! वो क्या करें ?
नील के बेइंतहा प्यार उसे आकंठ डुबो देता ,तो दूसरी ओर शक्की स्वभाव उसके स्वाभिमान को अक्सर तार -तार कर जाता था।
झगड़ा बढ़ने पर वो तलाक़ के बारे में भी सोचती थी , लेकिन पैर न उठते थे कि बिछोह का गम नील सह नहीं पायेगें ..... कहीं कुछ उन्हें हो गया तो ....?
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
एक स्त्री की सहिष्णुता और उसकी ममता को बहुत सुंदरता से अभिव्यक्त किया है ॥
स्त्री का कामकाजी होना जहाँ आजके समय की मांग है, वहीं यह स्थापित पुरुषवादी समाज के पुरुषों के मुँह पर करारा थप्पड़ भी है. ’क्यों काम करना चाहती हो, मैं क्या मर रहा हूँ या तुम्हारी अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती’ - यह है ऐसी सोच से ग्रस्त पुरुषों के भावशब्द !
इस लघुकथा का नायक आजके समय की मांग और स्थापित पुरुषवादी समाज की प्रवृति के दो पाटों में पिसता हुआ एक लाचार ’बेचारा’ है. पत्नी की व्यावसायिक-सामाजिक सक्रियता को वह न निगल पा रहा है न उगल पा रहा है. इस द्वंद्व को गहराई से उभारा गया है. पत्नी के स्त्रीत्व को भी सार्थक शब्द मिले हैं. बधाई..
अलबत्ता शिल्पगत प्रयास अभी और आवश्यक है, आदरणीया कान्ताजी. कथा अभी और कसावट चाहती है. ऐसे विषयों में शब्दों की सान्द्रता सोने में सुहागा का काम करती है.
शुभेच्छाएँ.
आदरणीया , काम काजी महिलाओं की पीड़ा को सही स्वर दिया है आपने , हार्दिक बधाई ।
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