२१२ १२२ २
गली गली बुहारूँ क्या?
नालियाँ निथारूँ क्या ?
काम छोड़ कर अब मैं
रास्ता निहारूँ क्या?
आसमां से उतरे हो
आरती उतारूँ क्या?
धूल लग गई शायद
पाँव भी पखारूँ क्या?
देखना है चेह्रा अब
आईना सँवारूँ क्या?
लाए कुछ नए जुमले
शब्द मैं सुधारूँ क्या?
धूप लग रही क्या जी
अब्र को पुकारूँ क्या?
वोट मांगने आये
पांच साल वारूँ क्या?
स्याह क्यूँ हुई रंगत
बोलिए निखारूँ क्या?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० सौरभ जी, इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ|
बहुत खूब ! हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया
प्रिय महिमा श्री,आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
आ० श्री सुनील जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका.
आ० डॉ० गोपाल भाई जी ,इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ सादर.
आ० जवाहर लाल सिंह जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी,ये ग़ज़ल आपको प्रभावित की मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया तोषकारी होने के साथ उत्साह वर्धक भी है जिसके लिए आपका लख- लख आभार.
महर्षि त्रिपाठी जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
मिथिलेश भैया ,आपको ये छोटी बह्र पर व्यंगात्मक ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ अब कुछ संशोधन किया है एक बार और विचार व्यक्त करें |
आ० कांता रॉय जी ,इस व्यंगात्मक ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाया आपने बहुत- बहुत शुक्रिया मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार |.
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