(१ )
क्रोध बड़ा उसका जहरीला
मुखड़ा होता नीला पीला
छेड़ूँ तो दिखलाता दर्प
क्या सखि साजन
ना सखि सर्प
(२ )
झूम झूम कर मुझे रिझाता
अपनी ताकत सदा दिखाता
प्यार करूँ तो बनता साथी
क्या सखि साजन
ना सखि हाथी
(३ )
हाय मूढ़ की अजब कहानी
काटे तो माँगू ना पानी
क्रोघ करे तो भागे पिच्छू
क्या सखि साजन
ना सखि बिच्छू
(४ )
हर दम पानी पीता रहता
एक जगह पर बैठा रहता
गर्दन छोटी है पेट बड़ा
क्या सखि साजन
ना सखि घड़ा
(५)
सब गुण उसके हैं अनमोल
लगता कितना गोलमटोल
चाहे उसको दिल से दद्दू
क्या सखि साजन
ना सखि कद्दू
(६ )
पिद्दी होकर ताब दिखाता
फूँक मारते ही उड़ जाता
पँहुचे वहीँ जहाँ हो सापड़
क्या सखि साजन
ना सखि पापड़
--------
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जी ,आ० सौरभ जी ये सापड हमने बहुत खाया साउथ में सापड़ विद पापड़ ---:))))
प्रस्तुति पर उपस्थिति के लिए आभार .
आपने तो सापड़म् की याद दिला दी आदरणीया राजेश कुमारीजी ! .. तईर-सादम .. फुल्ल सापड़म !! :-))
वाह दीदी कमाल किया बहुत बढ़िया
आ० श्री सुनील जी ,आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ आपको प्रस्तुति रोचक लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका .
आ० गिरिराज जी ,कहमुकरिया आपको पसंद आई दिल से आभार आपका |
बहुत सुन्दर , आदरणीया , बधाई आपको , कह मुकरियों के लिये ।
मिथिलेश भैया ,आपको ये कहमुकरियां पसंद आई दिल से बहुत- बहुत आभार.
हा हा हा
बढ़िया कह्मुकरिया दीदी
दद्दू -कद्दू मस्त हुआ है
बधाई
बहुत- बहुत शुक्रिया कृष्ण मिश्र जी आपको ये कह्मुकरिया आनंदित कर पाई मेरा लिखना सार्थक हुआ |
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