For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वास्ता बीच अब कुछ रहा भी नहीं (फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

कुछ कहा भी नहीं कुछ सुना भी नहीं

 वास्ता बीच अब कुछ रहा भी नहीं

 

वक्त मेरा समझिये हुआ है फ़िजूल,

प्यार उनकी नज़र में दिखा भी नहीं

 

कौन कहता यहाँ लोग मासूम हैं,

बात करते नहीं कायदा भी नहीं

 

है पड़ोसी मगर हाल तो देखिये

,बोलता भी नहीं जानता भी नहीं

 

फ़लसफ़े जिन्दगी के अजीबो गरीब,

अब कहो क्या लिखें कुछ नया भी नहीं

 

मुफ़लिसी से हुआ बेअसर ये सबू ,

जाम पर जाम पीकर नशा भी नहीं

 

  तीरगी में जला होंसलों का  दिया

 मन मुताबिक़ भले वो हवा भी नहीं.

'राज', खुल कर करो प्यार संसार ये

, कुछ भला भी नहीं तो बुरा भी नहीं

------------------राजेश कुमारी 'राज' 

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2015 at 10:45am

बहुत- बहुत शुक्रिया आ० सौरभ जी,आप ग़ज़ल तक आये उसी के लिए शुक्रिया ------आप आयें हुजूर और वाह वाह  करें ,'राज' ने ऐसा कुछ तो  कहा भी नहीं.....हैं न ! :-))))))  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2015 at 6:21pm

ना, ये हुआ भी नहीं, ये जमा भी नहीं..
ये रुटीनी टाइप की ग़ज़ल हुई है, आदरणीया राजेश कुमारीजी.

हम सभी प्रस्तुतियों पर वाह-वाह कहाँ करते हैं.. हैं न ! .. ;-)))  

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 29, 2015 at 3:55am

दीदी फिर ऐसे भी कह सकते है -

केवल 'भले' कथ्य को कन्फ्यूज कर रहा है 

मन मुताबिक़ भले ही हवा भी नहीं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2015 at 9:57am

मन मुताबिक़ भले वो हवा भी नहीं.--अर्थात मनमुताबिक चाहे वो हवा भी नहीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2015 at 9:56am

बहुत बहुत शुक्रिया मिथिलेश भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई |भैया बले  तो नहीं लिख सकते बले मतलब जलने के अर्थ में आता है भले ये हो न हो ...इस द्रष्टिकोण से पढेंगे तो समझ जायेंगे भले शब्द तो हम दैनिक बोलचाल में बोलते आये हैं |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 3:41am

आदरणीया राजेश दीदी बेहतरीन फिल बदीह ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

तीरगी में जला हौसलों का  दिया

मन मुताबिक बले वो हवा भी नहीं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 25, 2015 at 10:54am

आ० हरिप्रकाश जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ इस होंसलाफ्जाई का दिल से आभार . 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 6:17pm

फ़लसफ़े जिन्दगी के अजीबो गरीब,

अब कहो क्या लिखें कुछ नया भी नहीं

 

मुफ़लिसी से हुआ बेअसर ये सबू ,

जाम पर जाम पीकर नशा भी नहीं.........आनंद आ गया  , हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी  ! सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2015 at 5:01pm

आ० गिरिराज जी,आपका बहुत- बहुत आभार  ग़ज़ल आपको पसंद आई ,जिस मिसरे की बात आपने कही है सच में वो उस भाव से न्याय नहीं कर रहा अभी इसका निवारण यूँ सोचा है --

तीरगी में जला होंसलों का  दिया

मन मुताबिक भले वो हवा भी नहीं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2015 at 12:54pm

आदरणीया राजेश जी , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल  हुई है , आपको दिली बधाइयाँ गज़ल के लिये ।

तीरगी में जला होंसलों का  दिया

   ,जो बुझा दे उसे वो हवा भी नहीं.     -- आदरणीया , भी नहीं को क्या संतुष्ट कर पाया आपका शे र  एक बार और सोच लीजियेगा ,  सानी मे ऐसा अर्थ निकल रहा है कि आप को हसलों के दियों के न बुझने का मलाल है , 

दिल जलाया मेरा आज सोजे निहाँ

जो बुझा दे उसे वो हवा भी नहीं.....    भाव  ऐसा कुछ होना चाहिये था ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service