२२ २२ २२ २२
कहीं पे' ठण्डी' बयार जिन्दगी ।
कहीं लगे अंगार जिन्दगी ।।
पतझड और बहार जिन्दगी ।
सुख दुख का व्यापार जिन्दगी ।।
जाने कितने रंग से' खेलें।
होली का त्यौहार जिन्दगी ।।
नानी माँ की गोद में' है तो।
इमली,आम,अचार जिन्दगी ।।
इश्क के' मारों से जो पूछा।
दिलबर का दीदार जिन्दगी ।।
उनके होंटों के साहिल पर।
फूलों सी रसदार जिन्दगी ।।
कौन समझ पाया है इसको।
उलझन का संसार जिन्दगी ।।
कल राहुल फुटपाथ पे' देखी।
बेबस औ'र लाचार जिन्दगी ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बढिया अभ्यास चल रहा है. मिले सुझाव पर ध्यान देते हुए आगे बढ़ें.
शुभेच्छाएँ
अच्छी ग़ज़ल हुई है
बधाई स्वीकारें
ध्यान दें कि,
विशेष ढंग से पढने पर ही मतला बा-बहर लगता है
पहला शेर होने के कारण पाठक को बहर के बारे में पता नहीं होता, इसलिए वो बिना मात्र किराए पढ़ेगा और आगे शेर में उसी लय से पढ़ेगा तो दिक्कत महसूस होगी
फिर वो पहले मिसरे की बहर समझने के लिए उसे अलग अलग तरह से गिरा कर पढने की कोशिश करेगा
इतने भर में तो पाठकीय जोश समाप्त हो जाता है
इसलिए कोशिश करनी चाहये कि मतला में मात्रा न गिराई जाए या कम से कम गिराई जाए
इस तरह बिलकुल न गिराई जाए कि लय को समझने में पाठक उलझ कर रह जाए
आदरणीय राहुल भाई जी
बढ़िया ग़ज़ल हुई है बधाई
मतला को लेकर सशंकित हूँ
सीधे सीधे चार चौकल बनते तो ग़ज़ल और निखर जाती.
कल राहुल फुटपाथ पे' देखी।
बेबस औ'र लाचार जिन्दगी ।।,,,,,,,वाह ,,,बहुत खूब आ. Rahul Dangi जी |
नानी माँ की गोद में' है तो।
इमली,आम,अचार जिन्दगी ।।....बेहद उम्दा
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