For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिगरेट की राख सी जिंदगी

कम्पनी में गबन के आरोप में वह आज पांच साल की कैद काट कर वह जेल से छूटा तो सीधे दिव्या के घर पहुँचा । दिव्या नहीं मिली । वह काम पर गई थी । उसने उसके मोबाइल पर उसी जगह मिलने का समय दिया जहाँ वह अक्सर मिला करते थे ।

"मुझे भूल जाओ तुम । अब मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है ।" सिगरेट सुलगाते ही उसकी आवाज सुनाई दी ।

"पर यह सब तो मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिये किया था ? " सुनते ही उसका दिल रो पडा जैसे ।

"मेरी ख़ुशी या अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये ....! मेरी ख़ुशी तो तुम्हारी बाहों में थी ना कि तुम्हारी कैदखाने की ज़िन्दगी में ...मेरी कितनी रूसवाई हुई विनय ..! घर वालों से लेकर मोहल्ले वालो तक ...! "

"लेकिन ..! "

"लेकिन क्या ... , मेरी अब शादी हो गई है और बीतीं बातों को यही दफन करो । आज के बाद मुझसे मिलने की कोशिश भी ना करना। । "

दिव्या के कहे शब्द उसके सीने को बींध गये ।

सिगरेट अपनी पहली व दूसरी उँगलियों के मध्य दबी तेज रफ़्तार से जली जा रही थी । राख अभी भी सिगरेट के साथ चिपकी हुई थी ।

अचानक उसकी ऊँगली जली और उसने हाथ को झटका सिगरेट से बची राख भी उसकी ज़िन्दगी की तरह जमीन पर बिखर हुई थी ।

दिव्या वहां से कब गई उसे पता ही नहीं चला ।

फिल्टर के कश में जिंदगी को फूँक राख करने को निकल पडा़ ।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Joshi on July 24, 2015 at 3:41pm

धन्यवाद आ. सौरभ सर,मिथिलेश सर, आ. कांता दी उत्साहवर्धन हेतु सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 8:48pm

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पंकजजी. इंगितों का सुन्दर प्रयोग हुआ है. हार्दिक बधाई.

Comment by Pankaj Joshi on July 7, 2015 at 11:43am

धन्यवा परम आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आ. कांता जी , आ. मिथिलेश वामनकर जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2015 at 11:18am

आदरणीय , पंकज भाई , लघुकथा अच्छी लगी ! हार्दिक बधाई । शायद कुछ और लघु हो सकती थी , मै बहुत नहीं जांता लघु कथा के विषय मे , पर ऐसा लगा !

Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 8:51am
सिगरेट के साथ ही जिंदगी का तेज रफ्तार से राख में बदलते जाना ..... मन धुआँ - धुआँ हो उठा । बधाई आदरणीय पंकज जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 3:42pm

आदरणीय पंकज जी 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

लघुकथा का अधिकांश भाग प्रतीक की स्थिति को वर्णित करने में लग गया है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service