जात पात पंथ काज
विषमतायें हजार
भाषा बोली हैं अलग
हम सब एक हैं ।
वीर भोग्या वसुंधरा
किसान सींचे स्वेद से
लहलहाती बालियां
हम सब एक हैं ।
मची क्यूँ है मारकाट
खामोश क्यूँ हवा हुई
चिराग दिलों के बुझे
हम क्यूँ ना एक हैं ।
आतंकवाद दूर हो
मनु मनु में प्रेम हो
अनेकता में एकता
लगे सब एक हैं ।।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 9, 2015 at 6:10pm — 3 Comments
भूमिजा सुता जनक
चली आज पति संग
त्याग राज वेश सभी
वन को विदाई है ।
वन भयंकर पशु
जंगली आदम खोर
हड्डियों के ढेर देख
सीते घबराई है ।
प्रभु राम सीते मन
पढ़ मन मुस्कियायें
माया रचने की घडी
कैसी अब आई है ।
देह धारण मनुष्य
मिलता बड़े भाग्य से
माया तेरे कंधे बड़ी
जिम्मेदारी आई है ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 9, 2015 at 1:30pm — 5 Comments
कैसी तेरी यह दशा
माँ भारती हुई आज
दुश्मनों का रचा कैसा
ये प्रपञ्च खेल है ।
शेर की मांद भीतर
हाथ देने को तैय्यार
किसने अपने प्राणों
का मोह दिया ठेल है ।
देश के लाल बहुत
सदा हुए हैं तत्पर
करने प्राण उत्सर्ग
उत्सव खेल हैं ।
शत्रु मुण्डमाल आज
हाथों में खडग लिये
माँ भवानी को चढ़ाने
जन गण मेल हैं ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Pankaj Joshi on September 8, 2015 at 1:25pm — 2 Comments
कागज़, कलम, और स्याही स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगे हुए थे। कोई भी एक दूसरे के सामने झुकने को तैयार नहीं था। उनका झगड़ा देखकर कवि चुप न सका:
"क्या तुम लोगों को इस बात का भी आभास है कि बिना मेरी उँगलियों के सहारे तुम सब अस्तित्व हीन हो ! "
"किस अस्तित्व की बात कर रहे हो कविवर? अगर मैं न रहूँ तो तुम अपनी भावनाओ को किस चीज़ पर उकेरोगे?" कागज ने चेताया।
"अगर में रोशनाई न बिखेरूं तो लोग कागज पर क्या ख़ाक पढ़ेंगे?" पीछे से स्याही की आवाज आई I
"मेरे बगैर तुम्हारी…
Added by Pankaj Joshi on July 21, 2015 at 5:00pm — 5 Comments
मॉनसून का मौसम इस वर्ष भी ना के बराबर ही रहा प्रदेश में , तेज चटक धूप ने धरती को चीर कर रख दिया था , भूमि बंजर हो गई थी । ठीक वही हालात अनन्या के भी थे ।
छोटी उम्र में शादी , दूसरे दिन पति के स्वर्गवास होने का दंश भी ससुराल वालों ने उसके मत्थे मड़ दिया । बापू आये और बिटिया को वापस घर ले गये ।
कुछ ही वर्षों में बिटिया के वैधव्य के गम में पिता भी चल बसे । घर का सारा बोझ उसने अपने कन्धे पर ले लिया ।
एक बार सावन में अपनी सखियों के साथ बारिश में…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on July 15, 2015 at 4:38pm — 6 Comments
एक दिन वह अपने जर्मन शेफर्ड को सुबह घुमाने ले गई तो गलती से एक व्यक्ति के घर पर बंधा पामेरियन भी था , पामेरियन भौंका तो टाइगर ने जंजीर को तेजी से छुड़ाते हुए पास में बंधे एक पामेरियन को दबोच लिया ।
"टाइगर इधर आओ छोड़ो उसको " बिटिया चिल्लाई
वहां खड़े और लोग भी पामेरियन को बचाने में जुट गये। और उस लड़की को भला बुरा कहने लगे:
"जब आप से कुत्ता नहीं सम्भलता तो इसे पालते क्यों हो ?
तभी किसी ने टाइगर के सर पर तेजी से लोहे की रॉड से…
Added by Pankaj Joshi on July 6, 2015 at 3:00pm — 4 Comments
कम्पनी में गबन के आरोप में वह आज पांच साल की कैद काट कर वह जेल से छूटा तो सीधे दिव्या के घर पहुँचा । दिव्या नहीं मिली । वह काम पर गई थी । उसने उसके मोबाइल पर उसी जगह मिलने का समय दिया जहाँ वह अक्सर मिला करते थे ।
"मुझे भूल जाओ तुम । अब मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है ।" सिगरेट सुलगाते ही उसकी आवाज सुनाई दी ।
"पर यह सब तो मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिये किया था ? " सुनते ही उसका दिल रो पडा जैसे ।
"मेरी ख़ुशी या अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये ....! मेरी ख़ुशी तो…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on July 5, 2015 at 5:30pm — 6 Comments
अवध के नवाब ने बड़े चाव से अंग्रेजों के लिये रेजिडेसी बनाने के लिये पहला लखौड़ी का पत्थर रखा तो उसको शायद यह भान ही ना होगा कि यह इमारत आने वाली सदी में अपने खानदान के आखिरी वारिस के लिये कांटो का ताज बनवा रहा है ।
पूरा अवध प्रांत अंग्रेजों ने वापस हासिल कर लिया । बदले में उनको रेजीडेन्सी में क्रांतिकारियों द्वारा खेले खूनी खेल की गवाह वह खण्डर इमारत भी मिली।
असफल क्रान्ति ने नवाब को अंग्रेजों ने कलकत्ता फिर इंग्लैंड निर्वासित…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on July 2, 2015 at 6:00pm — 6 Comments
पूरी जवानी उसने नशे और जुएँ की लत और बाप की नीली बत्ती के रौब में होम कर दी ।
"अभी माँ व बाप को मरे अभी साल भर ही नहीं हुआ, और तुम्हारा नशे में यूँ दिन रात झूमना , आखिर तुम कब इसे छोड़ोगे ?
देखना रमन ! यह ड्रग्स कभी तुम्हारी जान ले के छोड़ेगी आज घर की एक एक चीज नीलाम हो चुकी है , यहाँ तक की नाते-रिश्तेदार , नौकर चाकर सब साथ छोड़ कर चले गये । मैं तुमसे तंग आ चुकी हूँ अब तुम्हारे साथ और नहीं…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on April 27, 2015 at 7:30am — 14 Comments
बहुत साल पहले 2006 में पंकज जी लखनऊ आशियाना में एक डिपार्टमेंट स्टोर पर अपने सेल्समेन और डिस्ट्रीब्यूटर के साथ call कर रहे थे। उसकी मालिक एक आंटी जी थी। उनके पति बैंक मैनेजर थे । पंकज जी उनसे काफी देर बातचीत की और जब चलने को हुये तो सेल्समेन को और डिस्ट्रीब्यूटर को इशारा कर दिया कि -- "जाओ आधी जंग लड़ ली है आधी तुम लोग लड़ो । "
उठते समय पंकज जी से एक गलती हो गई। पंकज जी ने उनसे चलते वक़्त ""थैंक यू आँटी जी" कह दिया । और अपनी गाडी पर आकर बैठ गये । थोड़ी देर बाद पंकज जी ने देखा कि उनके…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on April 17, 2015 at 8:30pm — 2 Comments
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