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कैसी तेरी यह दशा
माँ भारती हुई आज
दुश्मनों का रचा कैसा
ये प्रपञ्च खेल है ।

शेर की मांद भीतर
हाथ देने को तैय्यार
किसने अपने प्राणों
का मोह दिया ठेल है ।

देश के लाल बहुत
सदा हुए हैं तत्पर
करने प्राण उत्सर्ग
उत्सव खेल हैं ।

शत्रु मुण्डमाल आज
हाथों में खडग लिये
माँ भवानी को चढ़ाने
जन गण मेल हैं ।

मौलिक व अप्रकाशित  ।

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 10, 2015 at 9:44pm

आदरणीय देश भक्ति से ओत प्रोत आपकी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:16pm
आदरणीय पंकज जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति है। हार्दिक बधाई।

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