जात पात पंथ काज
विषमतायें हजार
भाषा बोली हैं अलग
हम सब एक हैं ।
वीर भोग्या वसुंधरा
किसान सींचे स्वेद से
लहलहाती बालियां
हम सब एक हैं ।
मची क्यूँ है मारकाट
खामोश क्यूँ हवा हुई
चिराग दिलों के बुझे
हम क्यूँ ना एक हैं ।
आतंकवाद दूर हो
मनु मनु में प्रेम हो
अनेकता में एकता
लगे सब एक हैं ।।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Comment
आदरणीय पंकज जी , प्रस्तुति की विधा समझ नहीं आई, भावाभिव्यक्ति हेतु बधाई
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर |
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