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जात पात पंथ काज
विषमतायें हजार
भाषा बोली हैं अलग
हम सब एक हैं ।

वीर भोग्या वसुंधरा
किसान सींचे स्वेद से
लहलहाती बालियां
हम सब एक हैं ।

मची क्यूँ है मारकाट
खामोश क्यूँ हवा हुई
चिराग दिलों के बुझे
हम क्यूँ ना एक हैं ।

आतंकवाद दूर हो
मनु मनु में प्रेम हो
अनेकता में एकता
लगे सब एक हैं ।।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 11, 2015 at 2:30pm

आदरणीय पंकज जी , प्रस्तुति की विधा समझ नहीं आई, भावाभिव्यक्ति हेतु बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 10, 2015 at 7:01pm
सुंदर रचना है आदरणीय पंकज जी बधाई स्वीकार करें
Comment by Shyam Narain Verma on September 10, 2015 at 5:50pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

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