For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

.
मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:03pm
आद0 मनीषा जी हार्दिक आभार व धन्यवाद आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:02pm
आद0 लक्ष्मण रामानुज जी हार्दिक आभार व धन्यवाद आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:01pm
आद0 विनय कुमार जी हार्दिक आभार व धन्यवाद । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 8:00pm
आद0 मिथिलेश वामनकर जी रचना को अपना अमूल्य समय देने हेतु हार्दिक आभार आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:58pm
हार्दिक आभार व धन्यवाद आद0 ओमप्रकाश जी । मार्गदर्शन के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।सादर ।
Comment by Manisha Saxena on July 12, 2015 at 6:56pm

हर पिता की यही तमन्ना होती है की उसका बेटाउससे एक कदम आगे निकले |बहुत ही बढ़िया लघु कथा| बधाई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 12, 2015 at 12:12pm

हर माँ  बाप  यही चाहते है कि संतान के कदम आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे रहे | बहुत सुंदर बात 

Comment by विनय कुमार on July 12, 2015 at 1:01am

बहुत सुन्दर लघुकथा और बढ़िया शीर्षक । पंच लाइन भी जबरदस्त है , बधाई इस रचना के लिए आदरणीया शशि बंसल जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 12, 2015 at 12:51am

आदरणीया शशि जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 11, 2015 at 7:01pm

 आदरणीय  shashi bansal जी

जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।

शानदार बात कही है . मगर यह विराम चिन्ह प्रवाह में गड़बड़ कर रहा है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service