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लेपटॉप ( लघुकथा )

" अम्मा , दद्दा , छुटके ! ई देखो , नए फिसनवा की पेटी । ऊ सहर की सड़क पे मिळत रही । "
" तनिक खोल तो मुनिया , कउनो गहना- जेबर भए तो दरोग़ा के बुलवाई के पड़ी ।"
" खोलत हैं अम्मा , ई का ? भीतर तो दर्पन चिपकत रही , वो भी ठुस्स भेसईंन रंगत ।"
" का कहत है ? फैंक अबहीं । जुरूर ई सुसरा सहर वाले कौनों जादू-टोना करके पटकत गईल ।"
" पर दद्दा , ई के भीतरे जो ढेर डिबियाँ जमत रहि , ऊ का , का ? "
" जिज्जी , तनक उहे बी तो .....का पता , कौनो गोली- बिस्किट ही धरें हों । "
" सैतान ! देखत हैं अबहीं ।दईया..... डिबिया भी जादुई निकली , देखों सबहिं , साक्षात् , राम , लक्ष्मण और सीता मैया प्रगट भये गए ।"

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 9:46pm

आंचलिक भाषा में यह कथा अच्छी हुई है आदरणीया शशि जी | हार्दिक बधाई |

Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:55pm
आद0 सौरभ पाण्डेय जी हार्दिक आभार व धन्यवाद रचना को अपना अमूल्य समय देने हेतु । रचना प्रस्तुतीकरण में हुई कमी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । भविष्य में और बेहतर करने का प्रयास करुँगी । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:36pm
आद0 अमन जी बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:35pm
आद0 गिरिराज जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सराहना हेतु ।सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 14, 2015 at 7:34pm
रचना को अमूल्य समय देने हेतु हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आद0 विनय जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:19pm

अवधी में आपकी लघुकथा मूल ब्लॉग में नहीं थी आदरणीया.. खैर ..

लघुकथा कई अर्थों में उत्सुकता तो पैदा करती है लेकिन आगे कुछ विशेष नहीं निकलता. खेद है, मुझे बहुत रुचिकर नहीं लगी, आदरणीया

सादर

Comment by aman kumar on July 6, 2015 at 2:27pm

ऊ सहर की सड़क पे मिळत रही । ?? 

उ कहिन कबाड़ में ना  मिल सकत ? 

अच्छी कथा है ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2015 at 10:53am

आदरणीय , आपकी लघु कथा अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:31pm

आँचलिक भाषा में लिखी एक सफल लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया शशि बंसल जी .

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