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ऊंचाई की तन्हाई ( लघु कथा)

रामप्रकाश बाबू ने बस थोड़ी सी बेवफाई ही तो शुरू किया दफ्तर में अपने  ईमान से कि सब जादू सा बदलने लगा . ईमान का स्तर थोडा नीचे क्या किया,रहन सहन ,खान-पान ,ऐश-मौज सबका स्तर ऊंचा होते गया . उड़ान ने ऐसी रफ़्तार पकड़ी कि साथ के यार दोस्त वहीँ नीचे ही रह गएँ .

होली का दिन था ,शहर की महँगी मिठाइयाँ टेबल पर सजी रखी  हुई थीं . यारों की टोली आ रही थी......... लेकिन ये क्या कोई उनकी तरफ आया ही नहीं उन्होंने हाथ भी हिलाया पर सब आपस में मशगूल थें .आज अलमारी में रखे  नोटों पर हाथ फिराने इच्छा नहीं हुई . आज अपने अकिंचन स्वर्ण भवन की क्षुद्रता रामप्रकाश बाबू को खल गयी .

.

( मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Omprakash Kshatriya on July 19, 2015 at 1:38pm

आदरणीय Rita Gupta जी

बहुत अच्छी लघुकथा  । बधाई । केवल कुछ क्लिष्ट शब्द प्रवाह में बाधा दाल रहे है ।

Comment by Rita Gupta on July 18, 2015 at 7:09pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी ,आभार .कृपया त्रुटियों की ओर इंगित करें ताकि सुधार सकूँ .

Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2015 at 10:26am

आदरणीय रीता गुप्ता जी,मनुष्य की पैसे की पीछे भागने की पृवृति का अच्छा चित्रण किया है साथ ही उसके दुष्परिणाम पर भी इशारा किया है!आपकी लघुकथा अच्छा संदेश देती है!एक दो मामूली सी त्रुटियां हैं उनको सुधार दें!हार्दिक बधाई!

Comment by Rita Gupta on July 17, 2015 at 12:19am
आदरणीय मिथिलेश जी बहुत आभार ,मैं भी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रही हूँ .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 11:52pm

आदरणीया रीता जी इस प्रस्तुति पर बधाई 

कथ्य और शिल्प पर गुनीजनों के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है. 

सादर 

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