सड़क के बीचो –बीच नन्ही सी कोपल को पैर तले आते देख मनीष सिहर गया था .क्या करने जा रहा था .तपती धरा ,गर्म हवा ,पथरीली जमीन पर पसरा पिघला डामर,अंगुल बराबर हैसियत पर टक्कर इनसब से.सीना ताने उस हरीतिमा की जिजीविषा ने उसे हिम्मत से लबरेज कर दिया कि वह मजबूती से घर में सबसे बोल सके कि गर्भ में बेटी है तो क्या वह उसे पोषित करेगा .जिबह के लिए जाती बकरी सम उसकी पत्नी खिल गयी और कभी जुबान नहीं खोलने वाले बेटे के जुर्रत पर माता पिता थम गए .नेपथ्य में नन्हा अंकुर एक बड़े से फलदार पादप में परिवर्तित होता दिख रहा था .
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय महिमा जी ,आभारी हूँ आपकी जो आपने हौसला वर्धन किया .
वाह....बहुत सुन्दर ... इस विषय पर हजारों कथाएं लिखी गई होगी..पर आपने बहुत ही खूबसूरती से इस विषय को संवार कर प्रस्तुत किया है ..बधाई आपको
धन्यवाद आदरणीय गणेश बागी जी ,आपसे शाबाशी मिलना मुझे गौरान्वित कर गयी .
धन्यवाद आदरणीय सौरभ पांडे जी ,यदि मैं ने भाव स्पष्ट व्यक्त किये हैं तो ये इस मंच और आपलोगों के सानिद्ध्य को जाता है .
स्पष्ट भाव को कितने सुन्दर बिम्ब मिले हैं ! वाह ! हार्दिक शुभकामाएँ, आदरणीया रीता जी.
वाह वाह, बहुत ही सधी हुई शैली में लघुकथा के बहाने बड़ी बात कह गयीं आदरणीया रीता गुप्ता जी, बहुत बहुत बधाई.
डॉ Vijai Shanker जी धन्यवाद .
आदरणीय Vinaya Kumar जी आभार
प्रेरक, बधाई, आदरणीय सुश्री रीता गुप्ता जी, सादर.
अच्छी सकारात्मक लघुकथा , बेहतरीन शब्दावली , बधाई स्वीकारें आदरणीया रीता गुप्ता जी .
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