दलदली जमीं पर ख्वाबों की बुनियाद
यामिनी हर दिन अपनी बेटी को लोरी सुनती थी ,जो आम लोरी से कुछ हट के होता था .
“मैं कम पढ़ी लिखी ,मजबूर और अकेली थी “.
तुम तन्हा नहीं ,मैं हूँ ना
“मेरे पास धन नहीं सिर्फ तन की दौलत थी “
तुम इतनी कंगाल नहीं होगी कि तुम्हे अपनी दुर्लभ तन बेचनी पड़े .
“संसार में कोई काम छोटा नहीं होता ,मैं भी हमदोनों की पेट की खातिर ही इसे काम समझ करती हूँ .”
तुम इतना सक्षम होगी कि छोटे काम तुम्हे करने ही नहीं…
ContinueAdded by Rita Gupta on July 30, 2015 at 9:50pm — 8 Comments
रामप्रकाश बाबू ने बस थोड़ी सी बेवफाई ही तो शुरू किया दफ्तर में अपने ईमान से कि सब जादू सा बदलने लगा . ईमान का स्तर थोडा नीचे क्या किया,रहन सहन ,खान-पान ,ऐश-मौज सबका स्तर ऊंचा होते गया . उड़ान ने ऐसी रफ़्तार पकड़ी कि साथ के यार दोस्त वहीँ नीचे ही रह गएँ .
होली का दिन था ,शहर की महँगी मिठाइयाँ टेबल पर सजी रखी हुई थीं . यारों की टोली आ रही थी......... लेकिन ये क्या कोई उनकी तरफ आया ही नहीं उन्होंने हाथ भी हिलाया पर सब आपस में मशगूल थें .आज अलमारी में रखे नोटों पर हाथ फिराने इच्छा नहीं हुई…
ContinueAdded by Rita Gupta on July 16, 2015 at 12:30pm — 5 Comments
सड़क के बीचो –बीच नन्ही सी कोपल को पैर तले आते देख मनीष सिहर गया था .क्या करने जा रहा था .तपती धरा ,गर्म हवा ,पथरीली जमीन पर पसरा पिघला डामर,अंगुल बराबर हैसियत पर टक्कर इनसब से.सीना ताने उस हरीतिमा की जिजीविषा ने उसे हिम्मत से लबरेज कर दिया कि वह मजबूती से घर में सबसे बोल सके कि गर्भ में बेटी है तो क्या वह उसे पोषित करेगा .जिबह के लिए जाती बकरी सम उसकी पत्नी खिल गयी और कभी जुबान नहीं खोलने वाले बेटे के जुर्रत पर माता पिता थम गए .नेपथ्य में नन्हा अंकुर एक बड़े से फलदार पादप में…
ContinueAdded by Rita Gupta on June 15, 2015 at 5:55pm — 21 Comments
नन्हा यश अंग्रेजी के शब्द जैसे गुड-बैड, स्माल-बिग ,ब्यूटीफुल-अग्ली(ugly) सीख रहा था .एक दिन स्कूल से आते ही उसने अंग्रेजी की पुस्तक निकाली और बोला
“माँ,ये देखो ये फोटो बिलकुल तुम्हारी जैसी है ,मैंने इसे ही ब्यूटीफुल लिखा तो टीचर ने गलत कर दिया .उन्होंने इस फ्रॉक वाली को ब्यूटीफुल बताया और इसे अग्ली,ऐसा क्यों? “
“बेटा,जिसे तुम मेरी जैसी समझ रहे हो वह तो सांवली है जबकि ये गोरी –चिट्टी है,इसलिए सुंदर वही हुई ना “
यश माँ को ध्यान से देखने लगा , रंग भेद की पहली कक्षा में उसकी…
ContinueAdded by Rita Gupta on June 11, 2015 at 10:30am — 25 Comments
"अरी भागवान ! तुम इस तरह क्यूँ देख रही हो बेटे को ?"
" देख रही हूँ कहीं लडखडाया तो हम झट से सहारा दे देंगे ."
"क्या वाकई तुम्हे लगता है कि उसे तुम्हारे सहारे की जरूरत है ?"
" शायद नहीं , बड़ा हो गया है अब जीवन साथी भी मिल गयी है ."
"हमने अपना फ़र्ज़ पूरा किया ,अब उसे हमारे सहारे की जरूरत नहीं है .
,जीवन पथ पर चलना सीखा दिया है हमने "
"पर अब हम असक्त हो गएँ हैं ,उसके प्यार की बैसाखी की जरूरत अब हमें है ."
@मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Rita Gupta on May 29, 2015 at 11:00pm — 16 Comments
अटका मन भटका मन
आज मैं सुदूर विदेश में अपने कमरे में आँख बंद कर लेटी हूँ पर मन मुझसे निकल उड़ा जा रहा है .थामने की बड़ी कोशिश की इस बेकाबू घोड़े सदृश्य मन को, पर असफल अशक्त हो निढाल हो गयी .सात समुन्दर पार कर , बिन पंखों का ये बावरा मन जा पहुंचा उस गाँव जहाँ मेरा बचपन बीता था .ऊँचे पहाड़ी पर जा टिका जहाँ से बचपन का वो जहाँ अपने विस्तारित रूप में दृगों में समाहित होने लगा .बाबूजी संग इस पहाड़ी पर ,इसी पेड़ के नीचे कितने रविवार मनाये होंगे .मन की आँखों से सारा…
ContinueAdded by Rita Gupta on May 29, 2015 at 4:03pm — 15 Comments
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