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ग़ज़ल : दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २

 

दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं

झूठ बोलूँगा नहीं सो चुप रहूँगा मैं

 

आप चाहें या न चाहें आप के दिल में

जब तलक मरज़ी मेरी तब तक रहूँगा मैं

 

बात वो करते बहुत कहते नहीं कुछ भी

इस तरह की बेरुख़ी कब तक सहूँगा मैं

 

तेज़ बहती धार के विपरीत तैरूँगा

प्यार से बहने लगी तो सँग बहूँगा मैं

 

सिर्फ़ सुनते जाइये तारीफ़ मत कीजै

कीजिएगा इस जहाँ में जब न हूँगा मैं

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2015 at 11:37am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायन जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 24, 2015 at 11:37am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 21, 2015 at 8:03pm

सिर्फ़ सुनते जाइये तारीफ़ मत कीजै

कीजिएगा इस जहाँ में जब न हूँगा मैं  ----बहुत बढ़िया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 21, 2015 at 10:57am
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , सभी अशआर लाजवाब हैं , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ॥
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 10:45am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 10:44am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:32pm
जनाब धर्मेंद्र कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 19, 2015 at 9:30pm

आदरणीय बड़े भाई धमेंद्र जी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

कृपया ध्यान दे...

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