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ग़ज़ल : ख़ुदा बोलता है बशर में उतर कर

बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२

ख़ुदाई जब आए हुनर में उतर कर

ख़ुदा बोलता है बशर में उतर कर

 

भरोसा न हो मेरी हिम्मत पे जानम

तो ख़ुद देख दिल से जिगर में उतर कर

 

इसी से बना है ये ब्रह्मांड सारा

कभी देख लेना सिफ़र में उतर कर

 

महीनों से मदहोश है सारी जनता

नशा आ रहा है ख़बर में उतर कर

 

तेरी स्वच्छता की ये कीमत चुकाता

कभी देख तो ले गटर में उतर कर

------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 555

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Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 3:19pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 3:16pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2015 at 7:27pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राहुल जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2015 at 7:27pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2015 at 7:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 18, 2015 at 6:39am
सुन्दर गजल हुई है आदरणीय
Comment by विनय कुमार on July 17, 2015 at 8:11pm

// इसी से बना है ये ब्रह्मांड सारा
कभी देख लेना सिफ़र में उतर कर // , क्या शेर है , दिली दाद क़ुबूल करें आदरणीय | बेहतरीन..

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 17, 2015 at 11:26am

बहुत खूब कहा है भाई जी बधाई ,

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:04am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:03am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी

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