For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसी दुनिया संभव ही नहीं है 

जिसमें ढेर सारे बाज़ हों और चंद कबूतर

 

बाज़ों को जिन्दा रहने के लिए

जरूरत पड़ती है ढेर सारे कबूतरों की

 

बाज ख़ुद बचे रहें

इसलिए वो कबूतरों को जिन्दा रखते हैं

उतने ही कबूतरों को

जितनों का विद्रोह कुचलने की क्षमता उनके पास हो

 

कभी कोई बाज़ किसी कबूतर को दाना पानी देता मिले

तो ये मत समझिएगा कि उस बाज़ का हृदय परिवर्तन हो गया है

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1237

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 18, 2015 at 8:27am

कभी कोई बाज़ किसी कबूतर को दाना पानी देता मिले
तो ये मत समझिएगा कि उस बाज़ का हृदय परिवर्तन हो गया है   

गजब का व्यंग्य कसा है आपने ! बहुत बहुत बधाई! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 17, 2015 at 2:02pm

आ० धर्मेन्द्र जी

बहुत सुन्दर   और  मार्मिक  रचना , अन्योक्ति और सटीक व्यंग,   बहुत बहुत बधाई ,

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:03am

आदरणीय मिथिलेश जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 10:47pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बाज़ और कबूतर प्रतीकों से कमाल की रचना हुई है, इस गहन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 4:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शरदिन्दु जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 4:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय कुशवाहा जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 16, 2015 at 4:09pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी, स्नेह बना रहे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 16, 2015 at 2:09pm

सुष्ठु भाव व्यंजना और पैनी अभिव्यक्ति को मूर्त करती हुई आपकी यह रचना सभी दृष्टि से प्रशंसनीय है आदरणीय.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 12:21pm

सही मार्ग दर्शन , आदरणीय , प्रवृत्ति नही बदलती, शायद मुखौटा बदलता हो , 

साधुवाद , बधाई , सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 12:13pm

एक वैचारिक कविता कई इंगितो को सापेक्ष करती है. किन्तु उन सभी के मध्य बनी तारतम्यता ही ऐसी कविताओं के सफल होने का पैमाना हुआ करती है. आपकी संवेदनशील प्रस्तुतियों के प्रति हम एक पाठक के तौर पर सदा से आश्वस्त रहा करते हैं. बाज़ और कबूतर को वैचारिक गहनता के साथ आपने प्रस्तुत किया है.

प्रस्तुत कविता की इन पंक्तियों के लिए जितनी प्रशंसा की जाए कम होगा -
बाज़ों को जिन्दा रहने के लिए
जरूरत पड़ती है ढेर सारे कबूतरों की
अद्भुत ! एक समझे-बूझे इंगित को कितना सटीक आयाम मिला है !

बाज ख़ुद बचे रहें
इसलिए वो कबूतरों को जिन्दा रखते हैं
उतने ही कबूतरों को
जितनों का विद्रोह कुचलने की क्षमता उनके पास हो
वाह वाह !

वैसे उपर्युक्त पंक्तियों मे आखिरी पंक्ति, जितनों का विद्रोह कुचलने ...  एक विशिष्ट सोच का परिणाम है, जो आगे निम्नलिखित भाव के साथ शाब्दिक होती है -

कभी कोई बाज़ किसी कबूतर को दाना पानी देता मिले
तो ये मत समझिएगा कि उस बाज़ का हृदय परिवर्तन हो गया है

कविता को कविता ही रहने देने केलिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय.. :-))

एवं, इस प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  ग़ज़ल 2122 1212 22 .. इश्क क्या…"
28 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service